मील का पत्थर 1 अरब टीका नहीं बल्कि सभी पात्र लोगों का पूरा टीकाकरण है

(समाज वीकली)

असली मील का पत्थर 1 अरब टीका खुराक देना नहीं है बल्कि 12 साल से ऊपर सभी पात्र जनता को निश्चित समय-अवधि के भीतर पूरी खुराक टीका देना है। कोविड टीके के संदर्भ में, किसी भी देश का यही लक्ष्य होना चाहिए। जब तक दुनिया की पूरी आबादी का टीकाकरण नहीं हो जाता, तब तक कोविड पर हर्ड इम्यूनिटी (सामुदायिक प्रतिरोधकता के ज़रिए) रोक लगना मुश्किल है।

अनेक अमीर देशों ने अपनी अधिकांश पात्र जनता का पूरा टीकाकरण कर लिया है और कुछ तो तीसरी बूस्टर खुराक भी देने लगे हैं (हालाँकि विश्व स्वास्थ्य संगठन बूस्टर खुराक की फ़िलहाल सलाह नहीं दे रहा है)। अमरीका, कनाडा, यूरोप के अनेक अमीर देश, सिंगापुर, ने अपनी 50-80% जनता का पूरा टीकाकरण महीनों पहले ही कर लिया है। सिंगापुर दुनिया का पहला देश है जिसने जुलाई तक ही अपनी आबादी के 80% को पूरा टीका दे दिया था। चीन ने अपनी जनता को 223 करोड़ खुराक टीका दे दिया है। असल लक्ष्य 1 अरब या 2 अरब नहीं है बल्कि अपनी आबादी के 70% से अधिक का, एक निश्चित समय-अवधि में पूरा टीकाकरण करना है।

भारत के 1 अरब टीका खुराक देने के मील के पत्थर को सराहना चाहिए क्योंकि हमारी स्वास्थ्य प्रणाली अमीर देशों जैसी सशक्त नहीं है, जन स्वास्थ्य में निवेश दुनिया के अधिकांश देशों की तुलना में जीडीपी के भाग का अत्यंत कम है। पर यह भी संज्ञान में लेना चाहिए कि 9-10 महीने में हमने सिर्फ़ 1 अरब खुराक दी हैं जबकि अब तक सभी पात्र लोगों को पूरी खुराक मिल जानी चाहिए – देश में लगभग 111 करोड़ लोग पात्र हैं, इसलिए 222 करोड़ खुराक लगनी हैं, जिसमें से 100 करोड़ (1 अरब) लग चुकी हैं।

लोकप्रिय संक्रामक रोग विशेषज्ञ और ऑर्गनायज़्ड मेडिसिन ऐकडेमिक गिल्ड के महासचिव डॉ ईश्वर गिलाडा ने भारत सरकार की 100 करोड़ टीके लगाने की उपलब्धि की सराहना करते हुए कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है – महामारी से पहले ही अनेक दशकों से, भारत दुनिया की ‘फ़ार्मेसी’ कहा जाने वाला देश रहा है क्योंकि भारत में निर्मित सस्ती जेनेरिक दवाएँ दुनिया के अनेक देशों में उपयोग की जाती हैं। महामारी से पूर्व भारत वैक्सीन निर्मित और दुनिया भर में निर्यात करने में भी सबसे आगे रहा है – सीरम इंस्टिट्यूट ओफ़ इंडिया महामारी से पहले ही दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता कहा जाता है।

पर भारत में जो दवा या वैक्सीन निर्मित और निर्यात होती है उनमें से अधिकांश की मौलिक शोध तो अमीर देशों द्वारा की गयी होती है। यह क्षमता भारत में विकसित होनी चाहिए कि मौलिक शोध की दिशा में भी प्रगति हो। फ़िलहाल यही हक़ीक़त है। कोविड में भी भारत में हर 10 में से 9 वैक्सीन जो लगी हैं उसका मौलिक शोध विदेश में हुआ है।

डॉ ईश्वर गिलाडा ने बताया कि भारत में कोविड टीकाकरण 16 जनवरी 2021 को शुरू हुआ था। 278 दिन के बाद 21 अक्टूबर 2021 को भारत ने 1 अरब खुराक का लक्ष्य पूरा किया। भारत में सरकारी नीति के अनुसार, 12 साल से ऊपर हर इंसान का टीकाकरण होना चाहिए (पूरी खुराक) – 1 अरब 11 करोड़ लोग इसके पात्र हैं। 2 अरब 22 करोड़ खुराक का लक्ष्य पूरा करना है और अभी 9 महीने से अधिक समय अवधि में 1 अरब हुआ है। भारत सरकार का लक्ष्य है कि आगामी 70 दिन में (2021 के अंत तक) हम लोग यह लक्ष्य पूरा कर लेंगे – जो यकीनन बहुत सराहनीय होगा – यदि ऐसा हुआ तो सभी पात्र लोगों को पूरी खुराक वैक्सीन लग जाएगी, और लगभग निर्धारित समय-अवधि में (11-12 महीनों में) लग जाएगी जो हर्ड इम्यूनिटी (सामुदायिक प्रतिरोधक क्षमता) के लिए भी श्रेयस्कर रहेगा।

ऑर्गनायज़्ड मेडिसिन ऐकडेमिक गिल्ड की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ सुनीला गर्ग और महासचिव डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा कि 1 अरब खुराक देने के लक्ष्य को पूरा करने के बाद अब भारत अगले लक्ष्य – 1 अरब 22 करोड़ और टीके की खुराक लगाने की ओर अग्रसर है जिससे कि सभी 12 साल से ऊपर लोगों का पूरा टीकाकरण हो सकें। इसके लिए यह भी ज़रूरी है कि जिन 6 वैक्सीन को भारत सरकार ने अनुमति दी है वह सभी पूरी क्षमता के साथ निर्मित हो रही हों और टीकाकरण कार्यक्रम में लग रही हों। पर हक़ीक़त यह है कि सरकार ने जिन 6 वैक्सीन को अनुमति दी है, उनमें से लग सिर्फ़ 3 रही हैं। जो 3 वैक्सीन लग रही हैं उनमें से सिर्फ़ 1 ही लगभग 90% लोगों को लगी है (कोविशील्ड – आक्स्फ़र्ड एस्ट्रा-जेनेका)।

कोवैक्सिन जिसे भारत बाइओटेक ने भारत सरकार के साथ बनाया है वह कुल खुराक का सिर्फ़ 10-11% है और रूस की वैक्सीन स्पुतनिक तो बहुत ही कम लगी है (1% से भी कम)। 3 ऐसी वैक्सीन हैं जो सरकार द्वारा महीनों से पारित हैं पर लगनी शुरू भी नहीं हुई हैं। मोडेरना (इस अमरीकी वैक्सीन की भारत में मार्केटिंग सिपला कम्पनी करेगी), जॉनसन एंड जॉनसन (इस अमरीकी टीके को बाइओलोजिकल-ई भारत में निर्मित करेगी) और जाई-कोवडी (जाईडस कैडिला और भारत सरकार द्वारा बनायी हुई दुनिया की पहली प्लाज़मिड डीएनए वैक्सीन) भारत में पारित हैं पर लगनी शुरू तक नहीं हुई हैं।

भारत सरकार द्वारा जिन 6 वैक्सीन को अनुमति मिली है उन सब को बिना विलम्ब पूरी क्षमता के साथ निर्मित करके जल्दी से जल्दी जरूरतमंद लोगों तक पहुँचाना चाहिए। अन्य वैक्सीन जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पारित हैं उनपर भारत सरकार विचार करे कि उन्हें जल्दी से जल्दी अनुमति मिले और वह भी देश में उपलब्ध हों। जब वैक्सीन पूरी क्षमता के साथ निर्मित हो सकेंगी और बिना विलम्ब लग सकेंगी तब ही निर्यात के लिए और भारत सरकार के मैत्री कार्यक्रम के लिए टीके अधिक उपलब्ध रहेंगे।

डॉ ईश्वर गिलाडा और डॉ सुनीला गर्ग ने कहा कि भारत वैश्विक स्तर पर दवाएँ और टीके निर्यात करता आया है। यदि कोरोना को हराना है तो दुनिया की कम-से-कम 70% आबादी का पूरा टीकाकरण एक निश्चित समय अवधि में हो जाना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य है कि दुनिया के हर देश की कम-से-कम 70% आबादी का पूरा टीका जून 2022 तक मिल जाए। यदि भारत की टीका कम्पनियाँ अपनी पूरी क्षमता से वैक्सीन निर्मित नहीं कर पाएँगी तो कैसे यह लक्ष्य पूरे होंगे? इसीलिए यह ज़रूरी है कि टीकाकरण में विलम्ब न हो, टीकाकरण गति अनेक गुना बढ़ें, वैक्सीन निर्माण में अत्याधिक बढ़ोतरी हो, अन्य वैक्सीन जो पारित हैं पर लगनी नहीं शुरू हुई हैं वह सब भरसक रूप से कार्यक्रम में नीतिगत लग रही हों, निर्यात आदि के लिए स्टॉक रहे और सभी देश अपनी आबादी का टीकाकरण समय से कर सकें।

यदि इन 1 अरब खुराक के आँकड़े ध्यान से देखें तो पाएँगे कि टीकाकरण सामान रूप से नहीं हुआ है – कुछ प्रदेश में जो आबादी में पूरा टीकाकरण करवाए लोगों का औसत दर है वह राष्ट्रीय दर से कहीं ज़्यादा है तो अनेक प्रदेश में राष्ट्रीय दर से बहुत कम। हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, केरल में अत्याधिक टीकाकरण जो राष्ट्रीय औसत पूरे-टीके-दर से कहीं ज़्यादा है तो उत्तर प्रदेश, बिहार आदि में राष्ट्रीय औसत का आधा या कम। 278 दिन के टीकाकरण में 2-3 दिन मात्र ऐसे हैं जब भारत ने अपने रोज़ाना टीका लक्ष्य पूरा किया (1 करोड़ टीका रोज का लक्ष्य) बाक़ी दिन बहुत कम टीकाकरण हुआ।

वर्तमान रोज़ाना 53 लाख टीका दर है, पर दर होना चाहिए 1.74 करोड़

टीकाकरण दर बढ़ोतरी पर तो है पर रोज़ाना लक्ष्य (1 करोड़ टीका रोज़) से बहुत कम ही रहा है। मई 2021 में रोज़ाना 19.69 लाख टीके लगे, जून 2021 में रोज़ाना 39.89 लाख टीके लगे, जुलाई में 43.41 लाख टीके लगे, अगस्त में 59.29 लाख टीके लगे, सितम्बर 2021 में 78.69 लाख टीके लगे पर अक्टूबर 2021 में औसत रोज़ाना टीका दर गिर कर 53.21 लाख हो गया।

अब भारत में यदि 70 दिन में 1 अरब 22 करोड़ टीके लगाने हैं तो अत्याधिक सक्रियता के साथ एकजुट होना होगा। समय बलवान है। वैक्सीन निश्चित समय अवधि में सभी पात्र लोगों को लगनी है यह जन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी ज़रूरी है। यदि 70 दिन में 1 अरब 22 करोड़ टीका लगाने हैं तो रोज़ाना 1 करोड़ 74 लाख टीके का औसत दर आना चाहिए जो मौजूदा 53 लाख के दर से 3 गुना से अधिक है।

बूस्टर डोज़: डॉ सुनीला गर्ग और डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा कि जिन लोगों ने शुरू में टीका लगवा लिया था उनमें से अधिकांश वही लोग थे जिन्हें कोरोना का ख़तरा अत्याधिक था जैसे कि वरिष्ठ नागरिक, पहली पंक्ति के कार्यकर्ता, स्वास्थ्य कर्मी आदि। यह मुमकिन है कि जो वैक्सीन से लाभ उन्हें मिल रहा था, वह संभवतः 6 माह या अधिक अवधि में कुछ कम हुआ हो – यदि ऐसा है तो क्या उन्हें तीसरी खुराक या बूस्टर डोज़ मिलनी चाहिए? एक ओर जो लोग वर्तमान में टीके के सुरक्षा कवच से बाहर है या वंचित हैं, उन्हें टीके की सुरक्षा देना ज़रूरी है तो दूसरी ओर यह भी देखना ज़रूरी है जो लोग पहले टीका करवा चुके हैं वह सब पूरी तरह से सुरक्षित बने रहें। बूस्टर डोज़ देनी है या नहीं इस पर वैज्ञानिक रूप से राय स्पष्ट हो, और नीति और कार्यक्रम बिना विलम्ब तय हो क्योंकि अनेक अमीर देश ऐसे हैं जहां तेज़ी से बूस्टर डोज़ लगनी शुरू हो चुकी है। हालाँकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बूस्टर डोज़ के लिए फ़िलहाल मनाही की हुई है।

भारत सरकार ने मई 2021 में आदेश दिया था कि कोविशील्ड वैक्सीन की दोनों खुराक के बीच समय अवधि 12-16 हफ़्ते रहेगी। डॉ ईश्वर गिलाडा जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि यह अवधि कम होनी चाहिए – यही जन स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी रहेगा। भारत सरकार ने 25% वैक्सीन निजी वर्ग के लिए आरक्षित कर रखी हैं परंतु निजी वर्ग इनका बहुत ही कम उपयोग कर पाया है।

कोविड टीकाकरण 2 पारी में सुबह से मध्यरात्रि तो होना ही चाहिए जिससे कि लोग अपनी सुविधानुसार लगवा सकें और देहाड़ी का नुक़सान आदि न हो। अवकाश के दिन टीकाकरण बंद हो जाता है जब कि अनेक लोगों को अवकाश के दिन करवाना शायद सुविधाजनक रहे। सरकार ने वृद्ध और सीमित शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए घर पर टीकाकरण का वादा तो किया था पर वह असलियत में कितना हो पा रहा है वह मूल्यांकन का विषय है।

ड्रग कंट्रोलर जेनरल ओफ़ इंडिया ने कोविड टीके को इमर्जन्सी उपयोग के लिए लाइसेन्स तो दे दिया था अब लगभग 1 साल हो गया है – इसलिए उसको फ़ाइनल शोध नतीजे देख के सामान्य लाइसेन्स देना चाहिए।

बॉबी रमाकांत – सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)

विश्व स्वास्थ्य संगठन महानिदेशक द्वारा २००८ में पुरस्कृत, बॉबी रमाकांत, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस), आशा परिवार और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) से जुड़े हैं। ट्विटर @bobbyramakant)

बॉबी रमाकांत

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