हिन्दू कालेज में सुमन केशरी द्वारा ‘गांधारी’ का पाठ स्त्री प्रश्नों की दृष्टि से ‘गांधारी’ महत्त्वपूर्ण कृति

नई दिल्ली।-(समाज वीकली) ‘मैंने बस यही जाना कि औरत की देह हो या पृथ्वी की देह … सारे युद्ध इन्हीं बिसातों पर लड़े जाते हैं। पुरुषों के लिए हम बिसात ही तो हैं ! पर नहीं! अब और नहीं !’ सुपरिचित कवि और नाटककार सुमन केशरी के सद्य प्रकाशित नाटक ‘गांधारी’ के इस संवाद और इस जैसे अनेक प्रभावशाली संवादों को हिन्दू कालेज द्वारा आयोजित रचना पाठ कार्यक्रम में भरपूर सराहना मिली। हिन्दू कालेज की हिंदी नाट्य संस्था ‘अभिरंग’ द्वारा सुमन केशरी के इस नाटक के अंशों का पाठ तथा रचना प्रक्रिया पर संवाद आयोजित किया गया था। महाभारत की प्रमुख पात्र गांधारी पर केंद्रित इस नाटक में लेखिका ने अनेक स्त्री प्रश्नों को मुखर अभिव्यक्ति दी है।

संवाद करते हुए केशरी ने कहा कि मेरे लिए यह सवाल हमेशा चुनौतीपूर्ण था कि अपने दृष्टिबाधित पति के समर्थन में अपनी आँखों पर पट्टी बाँध लेने का निर्णय गांधारी ने क्यों किया होगा। इस नाटक में गांधारी और धृतराष्ट्र के संबंधों पर भी नए ढंग से विचार किया गया है। सुमन केशरी ने कहा कि वे गांधारी के बारे में निरंतर सोचती रहीं और यह सवाल भी उनके मन में आया कि “आँखें मूंद लेने से व्यक्ति किसके पक्ष में होता है, न्याय के पक्ष में या अन्य के पक्ष में?” सुमन केशरी जी ने नाटक के चरित्रों का उदाहरण देते हुए कहा कि मनुष्य वह भी कर सकता है जिसके बारे में उसे लगता है वह नहीं कर सकता। मनुष्य परिस्थितियों द्वारा चालित कोई कठपुतली नहीं बल्कि वह उसका कर्ता है।

सुमन केशरी ने नाटक के कुछ प्रमुख अंशों यथा ‘शकुनी का संवाद’, ‘भीष्म गांधारी संवाद’ और अंतिम दृश्य पर अत्यंत प्रभावशाली पाठ किया। पात्रों के व्यक्तित्वों के अनुरूप आरोह-अवरोह के साथ उनका नाट्य पाठ सचमुच मंचन जैसा प्रभाव उत्पन्न करने में साक्षम रहा। भीष्म प्रसंग में आए संवाद, “पितामाह अपने हिस्से के दुःख मनुष्य को खुद ही सहन करने होते हैं,कोई किसी का दुःख नहीं बांट सकता।” पर प्रतिभागियों ने भरपूर सराहना की। रचना पाठ के बाद केशरी ने विद्यार्थियों के अनेक प्रश्नों के उत्तर भी दिए।

महिला विकास प्रकोष्ठ की परामर्शदाता प्रो रचना सिंह ने सुमन केशरी के पाठ को प्रेरक बताया। उन्होंने कहा कि कृति का सही पाठ करने की कला सीखनी आवश्यक है क्योंकि उसके रास्ते हम कृति के मर्म तक पहुँच सकते हैं। उन्होंने स्त्री प्रश्नों की दृष्टि से ‘गांधारी’ को महत्वपूर्ण कृति बताते हुए कहा कि यह नाटक हमारे संस्कृत वांग्मय में भी नयी पीढ़ी की रूचि बढ़ाने का काम करेगा। नाटक पर टिप्पणी करते हुए अभिरंग के परामर्शदाता डॉ. पल्लव ने कहा कि जिन पात्रों -चरित्रों को हम खूब जानते हैं उनके भीतर नवीन उद्भावनाएँ कोई लेखक कर दे तो यह उस लेखक की सबसे बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने नाटक के प्रभावशाली संवादों और समकालीन चिंताओं के उद्घाटन के लिए सुमन केशरी के इस नाटक को उल्लेखनीय बताया।उन्होंने कहा कि अभिरंग अपनी गतिविधियों में नाट्य पाठ एवं कृति चर्चा को शामिल कर नाटक के सभी पक्षों में युवा विद्यार्थियों की दक्षता का प्रयास करता है।

अंत में सह-सचिव आयुष मिश्रा ने धन्यवाद ज्ञापन करके आयोजन का समापन किय। लेखक परिचय जूही शर्मा ने दिया और अभिरंग की सह संयोजक नंदिनी ने संयोजन किया।

दृष्टि शर्मा

मीडिया प्रभारी

अभिरंग नाट्य संस्था, हिन्दू कालेज

दिल्ली

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