हर तरफ धुआं ही धुआं

Vibhooti Tripathi

– विभूति त्रिपाठी

हमारा भारत देश जिसको विश्व का सबसे बड़ा लोकतंात्रिक देश होने का गौरव हासिल है , समूचे विश्व में हमारा देश भारत ही एक ऐसा इकलौता देश है जहां पर रहने वाले लोगों को संविधान के माध्यम से सबसे ज्यादा अधिकार हासिल है , यही बात भारत देश को विश्व के अन्य देशों से अलग और महान बनाती है और भारतीय संविधान के द्वारा भारत के नागरिकों को दिये गई अधिकारों की वजह से देश का हर एक नागरिक खुद को गौरवान्वित महसूस करता है ।

आज की तारीख में हमारा देश हर एक क्षेत्र में प्रगति कर रहा है , आज की तारीख में देश के हर एक नागरिक की यही कोशिश है कि भारत देश पुनः एक बार फिर से विश्व गुरु के नाम से पहचाना जाये और ऐसी परिस्थित में जब देश में कुछ ऐसी वीभत्स और दर्दनाक घटनायें घटती हैं जिसको शब्दों में बयाॅ नही किया जा सकता है , फिर ऐसा लगता है कि अभी भी बहुत कुछ करना बाकी रह गया है।

अभी हाल ही में दिल्ली के अनाज मंडी में हुये वीभत्स अग्निकांड के बारे में जितना भी कहा जाये उतना कम ही है और इस तरह की वीभत्स घटनाओं के दर्द को शब्दों में उल्लेखित नही किया जा सकता । इस तरह की वीभत्स घटनाओं के बारे में सोचते ही दिल बैठने लगता है , बस एक ही बात बार बार मन में उमड़ उमड़ कर आ रही है कि , देश के कोने कोने से न जाने कितने लोग अपने घर परिवार को छोड़कर , बड़े शहर की तरफ अपना रुख कर लेते हैं , ताकि वो मेहनत कर सकें और उनके घर परिवार के लोगों को रोटी नशीब हो सके ।

ऐसे में जो भी गरीब , बेरोजगार लोग अपना सब कुछ छोड़कर बड़े शहर में रोजी रोटी के जुगाड़ में आते हैं , वहां पर उन सभी के मजबूरियों का फायदा उठाया जाता है , ऐेसे मेहनतकश ,गरीब और बेरोजगार लोगों को बद से बदतर परिस्थित का सामना करना पड़ता है और मानवाधिकार का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन किया जाता है ।
आज की परिस्थित में ये समझना जरुरी है कि जो भी गरीब बेरोजगार लोग अपना सब कुछ छोड़कर परदेश की तरफ अपना रुख कर देते हैं , ऐसे में उनका एक ही उद्देशय होता है कि , किसी भी तरह से उनके और उनके परिवार जनों के जीवन स्तर में कुछ सुधार हो सके , लेकिन अपना सब कुछ त्यागने के बाद उन्हें मिलता क्या है ??? ये एक अन्वेषण का विषय है ।

अभी दिल्ली के अनाज मंडी में हुये वीभत्स अग्निकांड के बारे में क्या कहा जाये ??? शब्द कम पड़ जायेंगे । न जाने कितने गरीब लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा , न जाने कितने माता पिता के बुढापे का सहारा चला गया और न जाने कितने बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया…. कुछ भी कहा नही जा सकता । जिस बद् से बद्तर स्थिति में वहां गरीब मजदूर लोग अपना जीवन यापन कर रहे थे उसकी परिकल्पना भी नही की जा सकती । ऐसी जगह जहां 100 से ज्यादा लोग रह रहे हों वहां पर हवा के निकलने के लिये कोई खिड़की नही थी , ताजी हवा के आने जाने के लिये कोई भी व्यवस्था नही थी , यहां तक कि दिन में भी वहां रात के जैसा नजारा रहता था क्योंकि कोई भी ऐसी व्यवस्था वहां नही थी जिससे कि सूरज की रोशनी अंदर पहुंच सके । वहां की स्थिति इतनी दर्दनाक थी जिसकी परिक्लपना मुमकिन ही नही , क्योंकि जहां इंसान रहते हों वो जगह ऐसी हो…शायद ही किसी ने सोचा हो…और ऐसी जगह पर सैकड़ों गरीब मजदूर अपने सपने को पूरा करने के लिये दिन रात जी तोड़ मेहनत कर रहे थे और इन सब के अंत में वो सभी एक ऐसी लंबी गहरी नीद में सो गये जिसकी सुवह कभी नही होगी और वो सभी अपने पीछे , अपनों को रोता बिलखता छोड़ गये ।

हमारे देश में इस तरह की ये अपने आप में पहली घटना नही है , इससे पहले भी इसी तरह की दिल को दहलाने वाली घटनायें कई बार घट चुकी हैं , जिसमें सैकड़ों गरीब और निद्रोष लोग अपनी जान गवां चुके हैं ।

ये हम सभी का दुर्भाग्य है कि, आजादी के इतने वर्षों के बाद भी शायद हम सभी पूरी तरह से आजाद नही हो सके हैं , क्यूंकि आज भी देश में एक आम आदमी और गरीब आदमी अपने सपनों को पूरा करने के लिये, अपने घर परिवार के रोजी रोटी की वजह से , कुछ तथाकथित लोगों के हाथों की कठ पुतली बन जाता है , बस यहीं से उन गरीबों का शोषण शुरु हो जाता है और शोषण की पराकाष्ठा धीरे धीरे इस स्तर पर पहुंच जाती है कि उनको अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है ।

जब जब देश में इस तरह की घटनायें हुई हैं , वहां वहां पर सरकारी तंत्र और प्रशासन की असफलता सबसे पहले नजर आयी है , लेकिन सवाल फिर वही है कि आखिर शासन और प्रशासन के नाक के ठीक नीचे कैसे इस तरह की व्यवस्था पनपने लगती है , जिसका अंत किसी न किसी तरह के वीभत्स और दर्दनाक कांड के रुप में होता है और इस तरह की दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी का होता है तो वो है एक गरीब आम आदमी ।

2 दिसम्बर 1984 में भोपाल में यूनियन कार्बाइड कंपनी के कारखाने में हुये मिथाइल आइसो साइनााइड के रिसाव की घटना को आखिर कौन भूल सकता है ??? पल भर में ही हजारों निर्दोष लोग मौत की आगोश में समा गये । पल भर में भोपाल शहर में लाशें ही लाशें दिखने लगीं और पूरा शहर कब्रिस्तान की तरह दिखने लगा । आज भी भोपाल में उस त्रासदी के निशान बाकी हैं , आज की तारीख में भी हजारों लोग उस जानलेवा गैस के रिसाव की वजह से कई सारी जानलेवा बीमारी को झेल रहे हैं । ये बात अपने आप में सिद्व हो चुकी है कि उस दुर्घटना में सारी जिम्मेदारी उक्त कंपनी की थी , ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या उस नरसंहार के दोषियों को कानून के कठघरे में लाया जा सका कि नही ??? क्या दोषियांे को उनके किये की सजा मिली ??? और जवाब है कि नही….. क्यूंकि कंपनी के मालिक और एक राजनीतिक परिवार के बीच बहुत ही घनिष्ठ संबंध थे , जिसका लाभ कंपनी को मिला और इसका खामियाजा भोपाल के हजारों गरीब परिवार वालों को उठाना पड़ा ।

इसी तरह से नई दिल्ली में 1997 में हुये उपहार सिनेमा कांड को आखिर कौन भूल सकता है , जब सिनेमा हाल में बार्डर फिल्म चल रही थी और उसी वक्त सिनेमा हाल के अंदर लगे हुये ट्रांसफार्मर में हुये विस्फोट की वजह से समूचा सिनेमा हाल धूधू कर जलने लगा था , सिनेमा हाल में बाहर निकलने के लिये पर्याप्त प्रबंध नही थे , और इस हादसे में 59 निद्रोष लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा , इस मामले में अंसल बंधुओं पर मामला दर्ज किया गया लेकिन अंत में 30 , 30 करोड़ के हर्जाने के साथ 1,1 साल की सजा मुर्करर की गई , लेकिन सवाल ये है कि जिनके अपने इस कांड में चले गये , क्या वो फिर वापस आ पायेगें ??? आखिर सिनेमा हाल में सब कुछ कायदे कानून का पालन करके क्यूं नही बनाया गया था ??? इसका बहुत ही सरल और सीधा जवाब है कि शासन और प्रशासन की ढुलमुल रवैये की वजह से ही ऐसा संभव है और कहीं न कहीं सरकारी तंत्र अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने में नाकाम रहा । इस नाकामी की वजह से ही निद्रोष लोगों को अपने प्राणों की आहुती देनी पड़ी ।

इस तरह से अगर बहुत ही बारीकी से हर एक घटना का विशलेषण किया जाये तो ये स्पष्ट हो जायेगा कि जब जब सरकारी तंत्र से चूक हुई है तब तब इस तरह की दर्दनाक घटनायें हमारे समाज में हुई हैं और इस तरह की घटनाओं में सिर्फ और सिर्फ गरीब आदमी ही सबसे सरल और आसान शिकार बनता है ।

अंत में बस इतना कहना चाहता हूं कि अगर देखा जाये तो हमारे देश में न जाने कितनी बार इस तरह की दर्दनाक घटनायें आज तक हो चुकी हैं , लेकिन अफसोस न जाने वो समय कब आयेगा जब हम सभी इस विषय पर एक जुट होगें और न जाने वो समय कब आयेगा जब हमारा प्रशासनिक अमला अपनी जिम्मेदारी को समझेगा , क्यूंकि आज तक हुई हर एक घटना की अगर निष्पक्ष तरीके से जांच की जाये तो एक बात निकलकर सामने आयेगी कि , हर बार जब जब सरकारी अमले द्वारा अपने जिम्मेदारी में ढिलाई बरती गई है, तब तब इस तरह की वीभत्स घटनायें हमारे यहां हुई हैं , हालांकि एक सवाल ये भी उठता है कि इस तरह की सरकारी चूक बार बार क्यूं होती है और जब जब इस तरह की लापरवाही सरकारी अमले के द्वारा की गयी , उस समय उक्त जिम्मेदार लोगों के खिलाफ भी क्या कोई कार्यवाही हुई ??? जहां तक मेरा अपना मानना है कि जब तक कड़ाई से जिम्मेदारी तय नही की जायेगी , तब तक सरकारी अमले की तरफ से इसी तरह की गैर जिम्मेदार कार्यवाही होती रहेगीं और इस तरह की दर्दनाक और वीभत्स घटनाऐं हमारे समाज में घटती रहेगीं ।

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