संसार में जब मानवता संकट में होती हैं, धनी व धर्म के ठेकेदार मैदान छोड़कर छुप जाते हैं.

आज कोरोना के कारण मानव समाज मुश्किल में है. हर देश में मेडिकल क्षेत्र व रिसर्च के वैज्ञानिक देवदूत बन कर मानवता की सेवा कर रहे हैं. अपनी जान जोखिम में डालकर आम व्यक्ति से लेकर धर्म के उन ठेकेदारों की भी जान बचाने में लगे हुए हैं जो हर दिन विज्ञान व वैज्ञानिकों को नकारते व दुत्कारते हैं, जो वैज्ञानिक सोच की धज्जियां उड़ाते हुए धार्मिक अंधविश्वासों को स्थापित करते हैं.

इन्हें अच्छी तरह पता है कि रोग के ऐसे भयावह प्रकोप में उन्हें काल्पनिक ईश्वर बचाने नहीं आएगा और वैज्ञानिक ही उनको जीवन दान देंगे.

वे कितने महान वैज्ञानिक थे जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान देकर पल भर में लाखों लोगों को मार देने वाली बीमारियों के टीके इजाद किए वरना यह धरती मरघट बन गई होती.

भारत में हर साल ऐसे धार्मिक स्थलों व संस्थाओं को सरकार व कारपोरेट घरानें अरबों रुपये का अनुदान देते है. श्रद्धालुओं से करोड़ों रुपयों का दान मिलता है लेकिन प्राकृतिक विपदा के समय में धर्म के ये ठेकेदार मैदान छोड़कर भाग जाते हैं और आम व्यक्ति और वैज्ञानिक ही जूझते करते नजर आते हैं. अरबों रुपयों पर सांप की तरह कुंडली मार कर बैठे ये लोग ऐसी विपदा में अठन्नी भी नहीं निकालते हैं.

धर्म के नाम पर ये दलित व महिला का अपमान, आपसी नफरत, झूठ, अंधविश्वास व अवैज्ञानिक तथ्यों की घुट्टी पिलाकर इंसानियत का भारी नुकसान कर रहे हैं.

ढाई हजार साल पहले तथागत बुद्ध से लेकर आधुनिक दुनिया के कई महान विचारकों व वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि ईश्वर का कोई अस्तित्व नहीं है ,संसार का सृजन किसी काल्पनिक ईश्वर ने नहीं किया बल्कि इसका विकास हुआ है और प्रकृति के नियमों से संसार चलता है उनका पालन करना ही धम्म है. लेकिन इन सारे तथ्यों को पैरों तले रौंदते हुए धर्म के ठेकेदार ईश्वर के नाम पर लूट और वैज्ञानिक सोच का गला घोंटते जा रहे हैं.

आखिर इस बार भी आशा की किरण विज्ञान ही है. कोई मजाक समझ रहे हैं, कोई यज्ञ हवन पूजा कर रहे हैं, कोई गोमूत्र की घुट्टी पिला रहे हैं, कोई सेनेटाइजर की जमाखोरी व मास्क की कालाबाजारी कर लूट रहे हैं तो दूसरी ओर मानवता के रक्षक वैज्ञानिक कोरोना का टीका बनाकर परीक्षण में लगे हुए हैं और हर बार की तरह जीत तर्क, विवेक और विज्ञान की ही होगी.
जय विज्ञान..जयभारत..जय संविधान

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