राजनीति और वैचारिक खोखलापन

– विभूति मनी त्रिपाठी 

राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और सत्ता के लोभ में आजकल हमारे राजनेता और राजनीतिक दल किस हद तक गिर चुके हैं, आये दिन इसका प्रदर्शन किसी ना किसी राजनेता के द्वारा किया जा रहा है, अभी हाल ही में सोशल मीडिया में एक वीडियो बहुत ही ज्यादा वाइरल हो रहा है, जिसमें बहुत सारे छोटे छोटे बच्चे एक साथ चैकीदार चोर है का नारा लगा रहे हैं, वहीं पर प्रियंका गांधी खड़ी यह सब सुन रही हैं और मुस्कुरा रही हैं, यह वीडियो देख कर मन को बहुत ही ज्यादा तकलीफ हुई, कुछ पल के लिये दिमाग बिल्कुल सुन्न सा हो गया और ऐसा लगने लगा कि क्या वाकई यह सब वास्तव में हो रहा है।
एक समय ऐसा भी था, जब अपने प्रिय राजनेता के विचार सुनने के लिये लाखों लोगों की भीड़ चुनावी सभा में पहुंच जाती थी लेकिन एक वक्त आज का है जब चुनावी सभा में लाखों लोगों की भीड़ आती तो है लेकिन उनको प्रलोभन देकर लाया जाता है और चुनावी सभा में ज्यादातर सिर्फ व्यक्तिगत हमले किये जाते हैं ।

Vibhooti Mani Tripathi

अगर राजनीतिक नारांे की बात की जाये तो भारतीय राजनीति के इतिहास में बहुत सारे ऐसे उदाहरण मिल जायेगें, जिसने समाज में एक तरह की वैचारिक क्रांति ला दी, उनमें से प्रमुख हैं, श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के द्वारा दिया गया नारा “जय जवान जय किसान” , इसको भारत का राष्ट्रीय नारा भी कहते हैं और यह नारा जवान और किसान के श्रम को दर्शाता है, श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने शास्त्री जी के नारे में “जय विज्ञान” जोड़ कर (जय जवान जय किसान जय विज्ञान) जीवन में विज्ञान की उपयोगिता का संदेश देने की कोशिश की, हाल ही में हमारे प्रधानमंत्री जी के द्वारा ”जय जवान जय किसान जय विज्ञान” में ”जय अनुसंधान” भी जोड़ा गया, जिससे कि समाज को अनुसंधान की भूमिका के बारे में जानकारी हो सके, क्यूंकि आज के समय में आम आदमी के जीवन में हुये आमूलचूल परिवर्तन में अनुसंधान का बहुत बड़ा योगदान रहा है । इस तरह से, हम यह कह सकते हैं कि समय समय पर हमारे राजनेताओं द्वारा ऐसे नारे दिये गये, जिसका देश के विकास में बहुत ही सराहनीय योगदान रहा है, लेकिन अगर आज के समय की बात करें तो कहने को कुछ भी बाकी नही रह जाता, क्यूंकि अब हमारे राजनेताओं का मुख्य मकसद देश का विकास नही, बल्कि अपने स्वतः के विकास पर ज्यादा होता है ।

सब कुछ देखने के बाद, अब यह स्पष्ट हो गया है कि, हमारे यहां की राजनीति अपने रसातल पर पहुंच चुकी है । देश की सबसे पुरानी राजनीतिक दल के अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा हर एक चुनावी सभा में चैकीदार चोर है का नारा बार बार दिया गया और हर एक चुनावी सभा में उनके द्वारा यही बात कही गई, आखिर कार यह मामला माननीय उच्चतम न्यायालय तक पहुंचा और माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा इस मामले में राहुल गांधी से यह सवाल पूछना पड़ा कि आखिर बिना किसी फैसले के कोई भी, किसी भी इंसान को चोर कैसे कह सकता है???

अपने इस बयान के लिये राहुल गांधी को माफी मांगनी पड़ी लेकिन शायद यह सब बहुत कम है, क्यूंकि किसी भी इंसान के सम्मान को ठेस पहुंचाकर कोई भी व्यक्ति सिर्फ माफी मांगकर बच नही सकता।

छोटे छोटे बच्चों के द्वारा ऐसे नारों को लगाना यह साबित कर रहा है कि राहुल गांधी द्वारा लगाई गई आग अब हमारे नौनिहालों तक पहुंच गई है और यह अपने आप में वाकई चिंता का विषय है ।

छोटे छोटे बच्चे जिनको शायद यह भी नही मालूम कि चोर क्या होता है, राफेल क्या चीज है, वे बच्चे चैकीदार चोर हैं का नारा लगा रहे हैं, यह अपने आप में बहुत ही चैकानें वाली बात है ।

सबसे जरुरी बात यहां पर यह है कि, ऐसे बच्चे जिनको कुछ भी नही मालूम, उनको इस तरह के राजनीतिक नारों को रटाना आखिर कहां तक सही माना जायेगा ।

आज के राजनीतिक माहौल में यह कहना बिल्कुल भी गलत नही होगा कि, अपने राजनीतिक लाभ के लिये, कुर्सी और सत्ता के लाभ के लिये, हमारे राजनेताओं के चमचे, अपने आकाओं को खुश करने के लिये, निम्न स्तर की राजनीति करने से भी नही चूक रहे हैं और यह भूल जा रहे हैं कि यही बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं और जिस तरह से अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिये उनकी जड़ों में इस तरह की बातें डाली जा रही हैं, यह किसी भी मायने में सही नही हैं ।
इस तरह की विघटनकारी बातें , बच्चों के कोमल मानसिक पटल पर गलत प्रभाव डालना शुरु कर देगीं और उनके अंदर मौजूद कोमल आचार और व्यवहार को दीमक की तरह धीरे धीरे चट कर जायेंगीं ।

राजनीति में विभिन्न दलों के नेताओं के मध्य वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नही कि राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की आड़ में किसी के भी चरित्र पर सवाल खड़े किये जायें और उस व्यक्ति के इज्जत, सम्मान और प्रतिष्ठा कोे नुकसान पहुंचाया जाये ।

यहां पर किसी भी व्यक्ति विशेष की बात नही हो रही है, क्यूंकि ऐसा वाक्या बार बार हुआ है और इस तरह की घटनाओं में हर एक राजनीतिक दलों के लोगों ने समय समय पर अपनी सहभागिता दी है ।

विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लिये क्या यह सब सही है…आज तो हमारे राजनेता सिर्फ और सिर्फ अपने फायदे की बात ही सोचते हैं, उनके दिमाग में एक ही बात रहती है कि किस तरह से उनका उल्लू सीधा हो जायेे और अपने उल्लू को सीधा करने के लिये वो किसी भी हद तक जा सकते हैं, जो कि अपने आप में बहुत ही चिंतनीय और गंभीर विषय है ।

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