युद्ध नहीं बुद्ध चाहिए

विद्या भूषण रावत

पिछले पांच वर्षो में भारतीय चैनलों और सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि देश में युधोंमाद का माहौल पैदा करने की रही है . मतभिन्नता वालो को देशद्रोही बताकर उन्हें चुन चुन कर पहचानने की और देख लेने को टी वी से अब मान्यता मिल चुकी है . सोशल मीडिया भी उनपर कोई कार्यवाही नहीं कर सकता और एसा लगता है के पार्टियों के ‘साइबर सैनिक’ सारा युद्ध अपने फेक न्यूज़ कैंपेन करके लड़ रहे है. इतिहास से कुछ लेना देना नहीं बस केवल विरोधियो को नीचा दिखाना है और दुशमन साबित करना है. भक्तजनों की समस्या ये है के आजकल नकली युद्ध और नकली योद्धा असली योद्धाओं के मुकाबले बहुत ज्यादा कमाई कर रहे है. युद्ध का एक अर्थशास्त्र है जो आज के दौर में मीडिया, नेता और दलालों की भरपूर कमाई करता है. टी आर पी के दौर में दरअसल रेटिंग ही असली सत्य है इसलिए झूठ को बार बार परोस कर लोगो के सामने रखा जाता है जो हकीकत से दूर होता है लेकिन बात ये है के पी आर पर चलने वाली सरकार फौजी कमांडरो और विदेश मामलो के जानकारों को सुनने की बजाये, अपने भक्त पत्रकार कहे जाने वाले संघी कार्यकर्ताओं को ज्यादा ही अहमियत दे रही है.

युद्ध की राजनीती वो लोग करते है जो अति-विश्वास से प्रेरित होते है और जिन्हें ये यकीं होता है के दुनिया में वे अकेले ही सब कुछ कर लेंगे. युद्ध में जाने के लिए तैयार करने के लिए आप जरुर अतिरेकपूर्ण बाते करते है लेकिन जिनको युद्ध में जाना होता है उन्हें हकीकत का पता होता है .

अगर इन पांच वर्षो में भारत को सबसे ज्यादा शर्मिंदा किसी ने किया है तो टी वी चैनलों में बैठे इन भडुआ भौम्पुओ ने. देश की जनता को बांटने और उनकी बातो में हाँ न करने वालो को खुले तौर पर मारने की धमकी देने वाले ये लोग एक जिम्मेवार मीडिया नहीं हो सकते जिसके इस वक़्त देश को बहुत जरुरत है. मीडिया का काम सरकार को आगाह करना होता है और देश को सही सूचना देना होता है लेकिन इस मीडिया ने आग उगलते फर्जी विशेषज्ञों को अपने चैनलों पर बैठा कर युद्धोन्माद पैदा किया और उससे ज्यादा एक जहरीला माहौल पैदा किया ताकि देश का एक बहुत बड़ा समुदाय हमेशा शक के दायरे में रहे और पाकिस्तान और कश्मीर से सम्बंधित हर बात के लिए उसको ही दोषी ठहराया जाए.

जब परसों भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान की सीमा के अन्दर बने जैश-ए-मुहोम्मद के ठिकानों पर बमबारी की तो उनकी आधिकारिक प्रतिक्रिया बहुत ही समझदारपूर्ण थी जिसमे उन्होंने कहा के भारत ने ये कार्यवाही न तो पाकिस्तान की सेना के विरुद्ध की है और न ही पाकिस्तान के लोगो के विरुद्ध. हमारी कार्यवाही पाकिस्तान में मौजूद उनलोगों के विरुद्ध है जो वहां से भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़े हुए है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की भाषा बहुत संयत थी. लेकिन भारत के मीडिया ने तो इस पर जैसे अपनी जनता के विरुद्ध ही जंग छेड़ दी. मीडिया और भक्तो की ये हार्दिक इच्छा है के दुनिया के नक़्शे से पाकिस्तान ही गायब हो जाए वैसे ही जैसे पाकिस्तान में बैठे बहुत से इस्लामिक जेहादी अभी भी लाल किले पे अपना झंडा फहराने की सोचते है. ये बात सोचने की है के इस उपमहाद्वीप में राष्ट्रवाद के नाम पर धार्मिक कठमुल्लावाद थोपा जा रहा है. पाकिस्तान के सत्ताधारियो की कोशिश भारत को समय समय पर शर्मिंदा करने की रहती है. वहा की सत्ता पर अभी भी मिलिट्री का कब्ज़ा है और वो इस बात से दिखाई देता है के विदेश मंत्रालय के बजाये वहा की सेना का प्रवक्ता मीडिया को संबोधित कर रहा है और यदि उसका लहजा देखेंगे तो पता चलेगा के पूरा राजनैतिक भाषण, शान्ति का सन्देश और अपनी ताकत का एहसास भी.

परसों की घटना के बाद ये निश्चित था के पाकिस्तान ऐसा कुछ करेगा जो उसके अपने अस्तित्व को दिखाने के लिए कुछ करेगा और उसने भारतीय सीमा का उल्लंघन किया जिसको रोकने की कार्यवाही में भारतीय वायुसेना एक जांबाज अधिकारी विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण पाकिस्तान सीमा के अन्दर पाकिस्तानी फौजियों द्वारा बंदी बना लिए गए. पाकिस्तान का सैनिक तंत्र इस घटना की जैसे तलाश में था और इसका उसने इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. विंग कमांडर अभिनन्दन का विडियो दिखाया जा रहा है जिसमे वह बहादुरी से अपना नाम बताते है लेकिन और कोई जानकारी नहीं देते हाँ बहादुर ऑफिसर ये जरुर कहते है के पाकिस्तान की सेना पूरी तरह प्रोफेशनल है और उनका अच्छा ख्याल रख रही है.

विंग कमांडर अभिनंदन के घटनाक्रम के बाद से ही सोशल मीडिया में संदेशो की बाढ़ आ गयी है. अब युद्ध के विरुद्ध भी लोग बात कर रहे है. पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की पोती फातिमा भुट्टो ने वहा की सरकार से विंग कमांडर अभिनंदन को तुरंत रिहा करने की बात कही है. ऐसे बहुत से लोगो के सदेश आ रहे है. भारत में टी वी पर आग उगलने वाले जनरलों के अलावा भी बहुत से ऐसे सैन्य अधिकारी है जो युद्ध की मानसिकता के खिलाफ है और आतंकवाद जैसे मसलो पर अन्तराष्ट्रीय दवाब को ज्यादा उपयोगी मानते है. जनरल एच एस पनाग, एडमिरल विष्णु भगवत, एडमिरल रामदास आदि ऐसे बहुत लोग जय जो शांति की बात करते रहे है लेकिन आज का बिकाऊ मीडिया उनका ध्यान भी नहीं देता.

दरअसल भारतीय लोगो का और विशेषकर हिंदुत्व के भक्तो का इतिहासबोध कुछ नहीं है. मैंने कई बार लिखा है के ये देश मई २०१४ में आज़ाद नहीं हुआ था जैसे कई भक्त समझ रहे है . इस देश ने युद्ध किये भी और जीते भी लेकिन उनसे कोई समाधान नहीं निकला. ज्यतादर युद्ध हम पर थोपे गए इसलिए जवाब देना बनता था. सबसे बड़ी बात युद्ध का फैसला राजनैतिक नेतृत्व करता है लेकिन उसको निर्णायक स्थिति में सैनिक नेत्रत्व लाता है. युध्ह अगर देश में लोगो को एक दुसरे से अलग करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा तो हम वो जंग हार जायेंगे जिसके लिए हमारे संविधान सभा के लोगो इन इतना समय लगाया और हमको एक ऐसा संविधान दिया जिस पर हम वाकई गर्व कर सकते है, इतिहास की इतनी बड़ी धरोहर हमारे पड़ोस में कही नहीं है, उनके यहाँ अभी भी लोकतंत्र स्थाई नहीं बन पाया है और पुर्णतः फौजी नेतृत्व के हवाले है. इसलिए ये जरुरी है के हमारी फौजे प्रोफेशनल बनी रहे और उनके नाम पर राजनिति न हो.

अभी जनरल एच एस पनाग ने १९७१ के बांग्लादेश युध्ह का जिक्र किया जिसमे पाकिस्तान के ९०,००० से अधिक सैनिक युध्बंदी बने थे और भारत ने जिनेवा कन्वेंशन के तहत उन्हें पूरा सम्मान दिया और बाद में छोड़ा गया. जनरल पनाग ने बताया के कैसे बिलकुल ऐसी ही परिस्थति में उन्होंने एक पाकिस्तानी पायलट फ्लाइट लेफ्टिनेंट परवेज़ कुरैशी मेहँदी को अपने जवानो के हाथो मरने से बचाया. परवेज़ कुरैशी अपने विमान से भारतीय सेना की टुकड़ियो को निशाना बना रहे थे और अचानक उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और परवेज़ पैराशूट की मदद से उतर गए लेकिन भारतीय जवानों ने उन्हें पकड़ लिया और जैसे होता है उनके साथ मार पीट भी की गयी. जनरल पनाग ने ये देख लिया और तेजी से अपनी टुकड़ी की और गए और अपने जवानो को अलग किया ताकि पाकिस्तानी पायलट बच सके. उन्होंने परवेज़ कुरैशी को आधिकारिक तौर पर गिरफ्तार किया और उस युद्ध का पहला युद्धबंदी बनाया. सैनिको को युद्ध के समय ऐसी परिस्थितयो के लिए तैयार रहना पड़ता है और येही के वे अनुशासन से बंधे होते है और अपने देश की सेवा कर रहे होते है. हर देश के सैनिको को देश सेवा के लिए हमेशा तैयार रहना पड़ता है और इसलिए जेनेवा कन्वेंशन के तहत युध्बंदियो के साथ मानवीय व्यवहार करने की बात होती है, उनका टार्चर नहीं किया जा सकता और देर सवेर उनको छोड़ना ही पड़ेगा. पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध के दौरान फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता को युद्ध्बन्धी बनाया था लेकिन ८ दिन में उन्हें रिहा कर दिया था. पाकिस्तान के जिस नौजवान फ्लाइट लेफ्टिनेंट परवेज़ कुरैशी मेहंदी को २२ नवम्बर १९७१ को जनरल पनाग ने ससम्मान बचाया वो पाकिस्तान के प्रमुख सैनिक अधिकारी बने और १९९७-२००० तक वहा के वायु सेना प्रमुख बने.

कहने का आशय यह के आजकल के आग उगलने और मारकाट को बढ़ावा देने के दौर में हम अपने जांबाज़ जवानो को बहुत खतरे में डाल रहे है. युद्ध किसी भी दौर में अंतिम परिणाम नहीं लाया सिवाय विध्वंश के. मौते दोनों और होती है, युद्ध बंधी भी दोनों और होते है. कल विंग कमांडर अभिनन्दन का विडियो खूब दिखाया जा रहा था. पाकिस्तान के सैनिक अधिकारी उसका मानसिक लाभ उठाने का प्रयास भी करते दिखे लेकिन एक हकीकत है और ओ ये के यदि कोई भी व्यक्ति इस युद्ध में पकड़ा गया और भीड़ के हत्थे चढ़ गया तो वो बहुत बेरहमी से मारा जा सकता है. ये अच्छी बात है पाकिस्तान के अधिकारियों ने उन्हें इज्जत दी लेकिन ये विडियो केवल दुनियाभर को दिखाने के लिए भी हो सकता है जबकि अन्दर कोई टार्चर न हो इसकी कोई गारंटी नहीं है.

इसलिए जरुरी है के हम मानवीय संवेदनाओं की बात करें और लोगो को कानून अपने हाथ में लेने की बात न कहे. सेना और प्रसासन को उनका कार्य करने दे और लोगो में एकता का भाव लाये. जो मतभिन्नता को देशद्रोह करार दे रहे है वे ये सोच के कल उनके साथ भी घटनाएं हो सकती है. मैंने कई बार कहा के हर एक समाज, जाति, धर्म, कही पर बहुमत में है और कही अल्पमत में. जरुरत इस बात की है के हम सब एक दुसरे के अधिकारों का सम्मान करे और अल्पसंख्यको को दुश्मन न बनाए,उन्हें अपने संघर्षो में भागीदार बनाए और उनके विचारों का सम्मान करें. जब भी ऐसे घटनाक्रम हो जहा भीड़ की क्रूरता बढ़ रही हो तो हम उसका हिस्सा न बने. अगर हमारे ‘मनोरंजन’ चैंनल लोगो कानून लेने की बढ़ रही प्रवर्ती को महिमंडित न कर इनके खतरों की और इंगित करेंगे तो आने वाले समय में हम एक बेहतरीन समाज का निर्माण कर पायेंगे.

हम अपने बहादुर सैनिको का सम्मान करते है. वे अपने परिवारों से दूर रहकर निष्टापूर्वक देशसेवा में लगे है. उनकी निष्ठां को राजनीती का हथियार न बनाए. जो परिवार अपने लोगो को खोते है उन्हें पता है इसकी कितनी बड़ी कीमत होती है. जिनके सदस्य युद्धबंदी बनते है उनके परिवारों पर क्या गुजरती है ये हरेक को पता नहीं होता. युद्ध किसी बात का उत्तर नहीं है. युद्ध करके भी बातचीत के लिए आना पड़ता है तो फिर पहले ही वो काम क्यों न हो ?

हम आशा करते है के पाकिस्तान जिनेवा कन्वेंशन का सम्मान करते हुए विंग कमांडर अभिनन्दन को ससम्मान रिहा करेगा और दोनों देश अपने सभी मुद्दों को खुले दिल चर्चा कर समाधान निकालेंगे. दक्षिण एशिया में हमें युद्ध की नहीं बुद्ध की जरुरत है ताकि हमारे खर्चे सैनिक साजो सामान पर न होकर शिक्षा, स्वास्थय, गरीबी उन्मूलन, अन्धविश्वास निर्मूलन आदि पर खर्च हो. इसके लिए यह भी जरुरी है के सभी देश अपने यहाँ व्याप्त धर्म के धंधेबाजो और उसके नाम पर घृणा और हिंसा फ़ैलाने वाले लोगो पे ईमानदार कार्यवाही करे ताकि हम सामूहिक रूप से प्रगति कर सके. युद्ध और सेना का बेवजह राजनैतिक इस्तेमाल नहीं होना हाहिये क्योंकि वह देश के लोकतंत्र के लिए बहुत नुक्सान वर्धक हो सकता है. हमारी सेनाये हमारे देश का प्रतिनिधित्व करती इसलिए उनकी कुर्बानिया और जीत सारे देश के लिए होती है एक पार्टी या सरकार के लिए नहीं. हम सब देश की सीमा पर तैनात सैनिको की चिंता करते है और उम्मीद करते है के उनकी परेशानियों को सरकार समझे और सार्थक कदम उठाये. भारतीय उप-महाद्वीप में व्याप्त समस्याओ का हल सारे देश मिलकर ही कर सकते है और सके लिए आवश्यक है के सभी सामाजिक न्याय की बात करें, अपने यहाँ अल्पसंख्यको और हासिये पे रहने वाले लोगो को सत्ता में भागीदारी दे और बसे महत्वपूर्ण बात ये के धार्मिक उन्मादियो पर कड़ी कार्यवाही करें और उन्हें सत्ता का संरक्षण न प्रदान करें. यदि ऐसा हुआ तो हमारे संघर्षो और झगडे से अन्तराष्ट्रीय बाज़ार में हथियारों का सौदा करने वाली कंपनियों और उनके रक्षा दलालों की दुकाने भी बंद हो जायेंगी और सभी शांति और समृधि रहेगी.

विद्या भूषण रावत

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