मान्यवर कांशीराम की राजनितिक विरासत

मान्यवर कांशीराम की ऐतिहासिक विरासत पर ईमानदारी से ही चलकर बहुजन समाज का राजनैतिक मिशन कामयाब हो सकता है

– विद्या भूषण रावत

(समाज वीकली)- आज मान्यवर कांशीराम साहेब का ८७ वा जन्मदिन है और देश भर में उनके प्रशंसको को इस अवसर पर हार्दिक शुभकामनाये.

आज देश बहुत कठिन हालत से गुजर रहा है और फिर से पुरातनपंथी शक्तिया सक्रिय है जो बहुजन समाज को विखंडित कर एक दूसरे के विरुद्ध खड़े कर देना चाहती है ताकि उनके अंतरविरोधो का लाभ उठाकर वे अपना राज काज निर्बाध ढंग से चला सके. कांशीराम साहेब के द्वारा खड़े किये गए शक्तिशाली मिशन को ऐसे लोग ख़त्म कर देना चाहते है क्योंकि उनके मिशन ने बहुजन समाज में अभूतपूर्व राजनैतिक एकता और उत्साह पैदा किया था जिसने शोषको के मन में भय पैदा कर दिया था. आज ये शोषक अलग अलग खेल खेलकर बहुजन समाज में बिघटन खड़े कर रहे है और उनको समझने की आवश्यकता है.

सोशल मीडिया के इस दौर में ट्विटर ओर फेसबुक पर सक्रिय अति महत्वकांक्षी लोगो ने गाँव देहात में काम करने वाले कार्यकर्ताओं को एक तिलिस्म दिखा दिया है जिसके कारण सभी लोग बिना जनसंपर्क के ही ‘क्रांति’ कर देना चाहते है. आज रोज रोज दलितों पे अत्याचार हो रहे और उस पर मजबूती से आवाज उठाने की आवश्यकता है. आरक्षण को ख़त्म किया जा रहा है, सरकारी क्षेत्र को ख़त्म किया जा रहा है. देश में एक पार्टी एक मार्किट और एक मालिक बनाने के प्रयास हो राये है. बहुजन समाज की बड़ी बड़ी जातिया हिंदुत्व की लम्बरदार हो गयी है और ऐसे समय में मान्यवर कांशीराम साहेब के मिशन से हम बहुत कुछ सीख सकते है.

भारतीय राजनीति में ऐसे व्यक्ति बिरले ही होंगे जिन्होंने मिशन की खातिर अपना घर ही छोड़ दिया. बहुत सारे लोग नौकरी छोड़ते है जो कांशीराम साहेब ने भी किया. १९५६ में पंजाब के एक कालेज से बी एस सी करने के बाद, उन्हें सर्वे ऑफ़ इंडिया में नौकरी मिली जिसे उन्होंने बांड न भरने के कारण छोड़ दिया और फिर १९६० में पुणे की डी आर डी ओ में काम किया और वहा आंबेडकर जयंती और फुले जयंती को लेकर संघर्ष किया. संगठन में जातिभेद के चलते उन्होंने १९६४ में अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने परिवार के साथ भी पूर्णतः सम्बन्ध विच्छेद कर दिए. उन्होंने कहा के वह आंबेडकर मिशन के लिए काम करेंगे और यह के पारिवारिक सम्बन्ध और जिम्मेवारिया मिशन की रह में सबसे बड़ा रोड़ा है. मुझे नहीं लगता के आज़ाद भारत में इतना बड़ा कदम किसी व्यक्ति ने लिया हो. कांशीराम साहेब जानते थे के जहा परिवार बड़ा हो जाता है वहा मिशन टूट जाता है. वह बहुत सधे हुए और समझदार व्यक्ति दे और किसी भी बड़े ‘समाज शास्त्री’ से बड़े समाज शास्त्री थे. वह जानते थे के ब्राह्मणवादी पार्टियों और नेताओं ने बहुजन नेताओं में ‘पद’ की महत्वाकांक्षा भर कर उनकी पार्टियों को कमजोर कर दिया है. ये सभी महत्वाकांक्षी नेता अपने परिवार के कारण राजनैतिक कार्यो में दूरी बनाकर नहीं रहते और फिर परिवारवाद और भ्रष्टाचार का शिकार हो जाते है जिसके कारण से समाज में कभी भी नया नेतृत्व नहीं उभर पाता . अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए ये सब लोग समझौता परस्त बन जाते है और अपने समाज और उसकी स्वतंत्र राजनीति के लिए सबसे बड़ा खतरा हो जाते है.

कांशीराम साहेब ये जानते थे के मनुवादी राजनैतिक दलों ने दलितों का केवल इस्तेमाल किया और उनके दलितों में दलित जा पिछड़े हमेशा एक ‘प्रकोष्ठ’ तक सीमित रह गए. उन्होंने आर पी आई और बी पी मौर्या जैसे नेताओं का हश्र भी देखा था इसलिए वह पहले से ही बड़े आन्दोलन की तैय्यारी में थे ताकि बहुजन समाज का एक स्वतंत्र और स्वायत्त नेतृत्व खडा किया जा सके जो बाबा साहेब आंबेडकर, ज्योतिबा फुले और छत्रपति शाहू जी महाराज और नारायण गुरु की विचारधारा पर चल सके. और अपने इस मिशन के लिए १९७१ में बामसेफ की स्थापना की और फिर १९८१ में डी एस ४ ( दलित शोषित समाज संघर्ष समिति ) की स्थापना की और फिर उन्होंने महसूस किया के अब इस आन्दोलन की धार को बिना राजनैतिक भागीदारी के मुकाम तक नहीं पहुंचाया जा सकता और फिर उन्होंने १९८४ में बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की. ऐसा नहीं था के पार्टी अचानक से बना दी गयी . १४ अप्रेल को पार्टी की स्थापना से पूर्व उन्होंने करीब ४,००० किलोमीटर लम्बी साइकिल यात्रा की और देश के भिन्न भिन्न हिस्सों में जनता से जुड़े कार्यकर्ताओं से संपर्क किया. हालांकि कांशीराम साहेब ने बामसेफ की स्थापना की थी और सरकारी कर्मचारियों को अम्बेडकरी मिशन के लिए महत्वपूर्ण माना था फिर भी बहुजन समाज पार्टी में उन्होंने जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं को तरजीह दी. इस मामले में उन्होंने पार्टी को ‘कर्मचारी’ संगठन नहीं बनने दिया जो बेहद महत्वपूर्ण था. आज की नेता जो बड़ी बड़ी बाते करते है उन्हें एक बात से सबक सीख लेना चाहिए की कार्यकर्ताओं का सम्मान करे बिना कोई पार्टी आगे नहीं बढ़ सकती. मान्यवर कांशीराम साहेब की ख़ास बात यही थी के उन्हें कार्यकर्ताओं के नाम पता थे और जब भी कोई बात कहते थे तो साफगोई से कहते थे चाहे वह कडवी क्यों ना हो.

कोई भी दल बिना कैडर के मज़बूत हो सकता. कांशीराम साहेब ने पार्टी कैडर को वैचारिक मजबूती देने के लिए कैडर कैंपो का आयोजन किया और स्वयं कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देते थे. ये आज की राजनीती में महत्वपूर्ण है . वह जुमलो में बाते करने के आदी नहीं थे हालांकि उनके नारों ने शोषको को दलितों की शक्ति का एहसास करवा दिया. ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी वैसी साझीदारी या, वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा, मात्र नारे नहीं अपितु एक पूरा लोकतान्त्रिक दर्शन था. इन नारों ने देश भर में बहुजन समाज के अन्दर एक बेहद उर्जावान नई चेतना का संचार किया. कांशीराम ने बहुजन समाज को शिकायत करने की आदत से हट कर निर्णय लेंगे वाले समूह में बदलने में कामयाबी प्राप्त की. सवर्णों को गाली देने या उनकी शिकायत करने में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं थी वह तो चाहते थे के दलित समाज जब सत्ता में होगा तो ये प्रश्न स्वयं ही कमजोर पड जायेंगे. उत्तर प्रदेश में उन्होंने ऐसी जातियों से नेतृत्व पैदा किया जो पहले कभी पंचायत तक नहीं पहुंचे थे और उनके समय बहुजन समाज पार्टी सभी बहुजन समाज की पार्टी बनी. किसी भी महापुरुष की विशेषता इस बात में होती है के उसने क्या पैदा किया ? क्या नया नेतृत्व दिया ?

इसलिए उत्तर प्रदेश की बागडोर जब सुश्री मायावती जी के हाथ में आई तो उसी दौरान पाल, राजभर, चौहान, निषाद, पासी, आदि जातियों के नए नेता भी पैदा हुए. उन्होंने एक ऐसा कैडर पैदा किया जो बाबा साहेब के मिशन को अपने जीवन का लक्ष्य बना चुका था. किसी भी पार्टी में कैडर कभी भी निष्ठावान नहीं होगा यदि उसका नेतृत्व उसे सम्मान न दे.

बहुत से लोग कांशीराम साहेब के इस बयान को के मै ‘अवसरवादी’ हूँ का ये मतलब निकालते है के जैसे वो बिलकुल ‘दिल’ की बात कर रहे हो. हकीकत यह है के ये बयान पत्रकारों द्वारा उनकी राजनैतिक रणनीति को लेकर था. वह जानते थे के मनुवादी पत्रकार उनकी पार्टी को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते और कांग्रेस ओर भाजपा के साथ रिश्तो को लेकर बार बार ऐसे प्रश्न पूछते थे जिससे कैडर में भ्रम की स्थिति हो. एक ऐसा व्यक्ति जो जीवन पर्यंत बेहद साधारण तरीके से रहा और पूरा जीवन समाज को समर्पित कर दिया हो, अपने परिवार से भी दूर रहा हो, वो किसके लिए भ्रष्टाचार करेगा. उनका केवल कहना यही था के मेरे समाज के हित के लिए मुझे यदि अवसरवादी बनना पड़े तो मै तैयार हूँ. और अपने समाज के हितो के साथ उन्होंने जीवन पर्यंत कभी समझौता नहीं किया.

बहुजन समाज के मिशन को मजबूत करने के लिए अम्बेडकरी आन्दोलन को ईमानदारी से समझना होगा और फिर से बहुजन समाज के सबसे हासिये के लोगो के मध्य जाकर उन्हें अहसास करवाना होगा के उनके सघर्ष में हम शामिल है. महत्वाकांक्षाओ के इस युग में बहुत कागजी शेर पैदा हो गए है और सभी ‘सत्ता’ चाह रहे है. कोई एक वर्ष और कोई बिना किसी मिशन के चल रहे है. बहुजनो की बहुत सी पार्टिया हो गयी है जो एक दूसरे के खिलाफ खडी है और सभी के स्वयंभू नेता अपने आपको कांशीराम समझ रहे है बिना ये जाने के कांशीराम एक विचार का नाम भी है जिसने आंबेडकर फूले, पेरियार साहू जी महाराज को उत्तर भारत में जन जन तक पहुंचा दिया और आज राजनितिक मुख्य धारा में प्रवेश करवा दिया. आज बहुजन समाज को ऐसे राजनीतिक नेतृत्व की आवश्यकता है जो सामजिक आन्दोलन और राजनैतिक पार्टी के बीच सामंजस्य बना सके और अपने कैडर से लगातार संवाद कर सके. बहुजन समाज की विभिन्न समुदायों को एक मंच पर पुनः लाने का कार्य मात्र वो कैडर कर सकता है जो कांशीराम साहेब के बहुजन मिशन का सिपाही रहा हो. सामाजिक तौर पर इस बात को सांस्कृतिक जागरण के जरिये ही किया जा सकता है. उसे आगे ले जाने की जिम्मेवारी बहुजन समाज पार्टी की है क्योंकि लाख कमियों के बाद भी अभी भी लोग उससे उम्मीदे लगाए बैठे है. बहुजन समाज के लोगो के मतों में विभाजन समाज के भविष्य की राजनीती के लिए नुकसानदेह है. आज बहुजन समाज को मान्यवर कांशीराम साहेब की और अधिक जरुरत है जो उनमे पुनः ऊर्जा का संचार कर सके. उनके राजनितिक मिशन को ईमानदारी से सभी समुदायों की भागीदारी और उनसे जन संपर्क के जरिये ही पूरा किया जा सकता है. युवाओं, महिलाओं और समुदायों से नए बदलाव-वादी नेतृत्व खडा करना पडेगा तभी हम वर्तमान सत्ता को चुनौती दे पायेंगे नहीं तो आज के दौर के तानाशाह बेलगाम रहकर दलित विरोधी नीतियों को अपनाते रहेंगे और हम उसे चुप चाप सहन करते रहेंगे. आज वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा नहीं चलेगा का नारा दोबारा गूंजना चाहिए ताकी लोगो को ये पता चल सके के सत्ताधारी किसके हितो के लिए काम कर रहे है और ये सारी लड़ाई सभी समुदायों की भागीदारी और नेतृत्व के बिना नहीं संभव है जो मान्यवर कांशीराम साहेब ने कहा था : जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी साझीदारी. आज यदि भारत में लोकतंत्र को मजबूत होना है तो ये दोनों बातो को हमारे सत्ताधारी यदि ईमानदारी से समझेंगे और उस पर चलेंगे तो देश में सभी समस्याओं का समाधान लोकतान्त्रिक तरीके से निकाला जा सकता है.

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