बाबा साहेब के रास्ते चलकर बद्लाव का बीज बोते कच्छ के दलित

 

-विद्या भूषण रावत

आज सुबह 6 दिसम्बर है और सभी लोग बाबा साहेब अम्बेड्कर की प्रतिमा पर माल्यापर्ण करने के लिये चौक मे एकत्र हुए है. माल्यापर्ण के बाद एक कार्यक्र्म मे करीब 150 किलोमीटर दूर से चल्कर आयी परमा बाइ अन्य साथियो के साथ मुझे लाल रंग का एक शाल पह्नाती है और बताती है के इसे स्थानीय वंनकर साथी ने बनाया है. मै कह्ता हूँ के मै उंन्से मिलने जाऊंगा क्योंकि ये उंनकी कला है और दुनिया को पता चले के इतनी खूब्सूरत चीज को बनाने वाला है कौन.

              परमा बाइ उन संघर्षशील दलित महिलाओ मे है जो गुज्ररात के क्चछ क्षेत्र मे आज भी अपनी जमीन को बचाने की लडाइ लड रही है जिसे गुज्ररात सरकार ने कागजो मे हेराफेरि से पूरे गांव के दलितो की जमीन को श्री सरकार एक्ट के तहत हड़प लिया है जिसमे कब्जा होने के बावजूद कुछ कानूनी पेचदिगियो को दिखा कर आपकी जमीन से मल्कियत सरकार की हो जाती है. परमा बाई अपनी जमीन बचाने के लिये कृतसंकल्प है. 62 वर्ष की उम्र मे वह अपनी बात कह रही है और मै उनसे पूछ्ता हूँ के आज आप बाबा साहेब अम्बेड्कर की प्रतिमा पर गये तो क्या मायने थे उनके आपके जीवन मे तो वह कह्ती है : बाबा साहेब की पूरी लडाई हमारे लिये थी और इसलिये हमारे समाज के लिये वह भगवान है. वह कहती हैं के भारत के लोगो को बाबा साहेब के रास्ते पर चलकर बुद्ध धम्म को अपना लेना चाहिये क्योंकि जातिवादी व्यव्स्था मे हमारे लिये कोइ जगह न्ही.” परमा बाइ का बेटा पह्ले प्लम्बिंग का काम करता था लेकिन उसने ड्राइविंग सीखी और मस्कट चला गया. आज परमा बाई सभी लोगो के लिये संघर्षरत है.

शम्शान की जमीन के लिये जग्गा भाई का जीवंत संघर्ष

 बचाउ कस्बे से करीब 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गाव है अब्म्लियारा. जग्गा भाइ सोलंकी अपने सयुंक्त परिवार मे यहा रह्ते है. उंनके 3 बेटे और 4 बेटिया है. जग्गा भाई के 4 भाई हैं और सभी के पास लगभग 12 बीघा जमीन है. दुर्भाग्यवश इस गाव मे आज भी छुआछूत है और दलितो को मंदिर प्रवेश की अनुमति नही है. उसके विरुध दलितो ने गांव मे अपना अलग से मंदिर बना दिया लेकिन हद तो उस वक्त हो गई जब उनके समुदाय के लिये आवंटित शम्शान भूमि पर पटेल समुदाय के एक दबंग ने न केवल कब्जा कर लिया अपितु उस पर एक मकान भी बना दिया. चार साल की लडाई मे अधिकारियो ने उन्हे झूठे वायदे करके उनके बहुत से धरना प्रदर्शन रुक्वाये लेकिन कुछ नहि हुआ. 2016 मे उंनके छोटे भाई की मौत संदिग्ध परिशिथितियो मे होने के बाद जग्गा भाई ने पोस्ट मार्ट्म के बाद शव लेने और दफन करने से इंकार कर दिया. याद रहे के गुज्ररात और देश के अधिकांश हिस्सो मे दलित मरने पर शवो को दफन करते है. चार दिन तक जग्गा भाइ और गांव के लोगो ने जिला मुख्यालय पर शव को वैसे ही रखा तो प्रशासन मे हंगामा हो गया और अंततह कलेक्टर ने आदेश कर उस अनिधिकृत बिल्डिंग को गिरवा दिया जो झगडे की जड मे था. इस प्रकार एक मौत पर भी प्रदर्शन के बाद ही जगगा भाई और उंनके समुदाय ने अपने लिये शम्शान घाट की लडाई जीती.

जग्गा भाई बाबा साहेब अ‍म्बेड्कर के जीवन से बहुत प्रेर्णा लिये और स्वयम न पढे लिखे होने के बाद अब अप्ने परिवर मे बच्चो को पढा रहे है. 14 अक्टूबर को उन्होने 112 अन्य लोगो के साथ भुज मे धम्म दीक्षा ग्रह्ण कर ली ताकि ब्रहामण्वादी जातिवादी अन्याय से मुक्त हो सके.

वनत नगर की वण्कर बस्ती मे साव्जी अपनी पत्नी दो बेटो और उनके परिवार के साथ रह रहे है. . इस बस्ती मे वण्करो के लगभग 60 परिवार और सरकारी कोलोनी मे रह रहे है. परिवार के सभी सद्स्य मिल्जुल्कर बुनाई का काम करते है और फिर उनका घर चल्ता है. इतने बेह्तरीन शाल और कालीन बनाने की कीमत मे वह कुल 15000 से 20,000 महीना ही कमा पाते है क्योंकि उनके पास कोइ अन्य साधन नही है. मै सावजी को उन्की बेह्तरीन कला के बधाई देता हू और बताता हू के यही उन्की सब्से बडी मेरिट है क्योंकि ये आर्ट और कला उंनके बस का खेल नही . मेरा ये मानना है के उन्की कला का उचित मुल्य उन्हे मिल्ना चाहिये क्योकि इस समय वह शोशन झेल रहे है.

 ऊनका बेटा अ‍रविंद कह्ता है के ‘मैने 12वी तक पढाई की लेकिन हमारे अध्यापक ने हमे कभी अंग्रेजी सीखने नही दी. बार बार वह कह्ते अरे अंग्रजी सीख्कर क्या लंदन जाने का इरादा है.” नतिजा ये हुआ के 12 वी की पढाई मेरे किसी काम की नही क्योंकि मैं किसी को भी अंग्रेजी मे चिट्ठी नही लिख सक्ता. आज हमारा इतना शोषण है के तीन लोग सुब्ह शाम मेह्नत करके इतनी बेह्तरीन कारीगरी करके के बुरे हाल मे जीने को मज़्बूर हैं. सावजी और अरविंद दोनो बाबा साहेब अम्ब्डेकर और बौध ध्म्म मे विश्वाश रख्ते है. अरविन्द मुझे अपना मोबाइल दिखा कर बताता है के बाबा साहेब और भगवान बुद्ध के अलावा उनके मोबाइल मे कुछ नही है.

अरविंद बताते है के एक बार शहर के एक मंदिर के निर्माण कार्य मे वह शामिल थी क्योंकि पेट भरने के लिये तो कुछ ना कुछ करना ही पडता है लेकिन जब मंदिर परिसर मे पुजारी देखने आये तो उन्हे गर्भ ग्रह से हटा दिया गया क्योकी शिवलिंग की सेटिंग उन्होने ही की थी और उनका ठेकेदार नही चाह्ता था के वह सभी लोगो से मिले क्योंकि इससे सवणो की भावना को ठेस पहुंच सकती थी. अरविन्द ने वताया के उन्होने वहा केवल काम के लिये काम किया और अपने पैसे लेकर चल दिया. आज अरविन्द अपने बच्चे को अँगरेजी मिडियम के स्कूल मे पढा रहा है और स्वयम भी बाबा साहेब के आंदोलन के विषय मे सूचनाये एकत्र करता है क्योंकि उसे और उसके पिता अब साफ तौर पर जान चुके है के बाबा साहेब के दिखाये रास्ते पर चलकर ही उनका आगे विकास होना सम्भव है.

 मुझे इतने स्थानो पर ले जाने वाले साथी रामजी का परिवार भी अम्बेड्करी है. उनकी मा मुझे बाज़रे की रोटी खिलाती है और फिर रामजी के परिवार पर भी बाबा साहेब की सोच नज़्र आती है. आज सभी अच्छे स्कूलो मे पढ रहे है और अम्बेड्करी आंदोलन के विषय मे जानकारी रखते है. रामजी ने प्रेम विवाह किया और उनकी पत्नी पटेल समुदाय से है. करीब 10 वर्षों के बाद अब उन्के परिवारो ने उन्हे स्वीकार कर लिया है. रामजी, गांवो मे अम्बेड्करि आंदोलन को धार भी दे रहे है और  उन्हे भूमि के प्रश्नो से जॉड भी रहे है.

इतने वर्षों मे गुजरात यात्रा के बाद पहली बार एक सकारात्क्मक अनुभव हुआ के अवसाद के इन गहरे क्षणों मे भी बाबा साहेब अ‍म्बेड्कर का मिशन और बुद्ध का विचार ही दलितो के बद्लाव का सबसे बडा उत्प्रेरक है. बद्लाव की इन प्रेरनास्पद कहानियो को और मज़बूत करने की आवश्यक्ता है.

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