पुलवामा की आड़ में फिरकापरस्त ताकतों के मनसूबे नाकामयाब करें 

Agra: A huge crowd gathered as the body of CRPF soldier Kaushal Kumar Rawat who was martyred in the Pulwama terror attack, reached his native village Kahari, in Uttar Pradesh's Agra on Feb. 16, 2019.
  • विद्या भूषण रावत

पुलवामा में आतंकवादी हमले के बाद से ही देश भर में सौहार्द के वातावरण को ख़राब करने के प्रयास किये जा रहे है. कश्मीरी छात्रो और व्यव्साइयो को तंग करने की और उन पर हमले की खबरे भी विभिन्न स्थानों से आई है. जम्मू के हालत बेहद ख़राब दिखाई दे रहे है.

सवाल ये है के क्या आतंकवादियों के हमले का जवाब देश में शांतिपूर्ण ढंग से रहने वाले लोगो से लिया जाए. अक्सर ऐसे मामलो में एक तबका अचानक से जाग उठता है क्योंकि घृणा और नफ़रत के अलावा उसने कुछ सीखा नहीं है. देश की आज़ादी के बाद से ये तबका इसी फिरकापरस्ती को बढाता है और उसके लिए मौके ढूंढता रहता है. पाकिस्तान में मौजूद इस्लामिक जेहादी दरअसल वो काम करते है जो भारत में लोगो में धर्म के नाम पर तनातनी और दुश्मनी पैदा करे. पाकिस्तान की फौज और उसके हुक्मरान पिछले ७० सालो से द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत से ग्रस्त है और ये साबित करना चाहते है के भारत में जो लोग साथ रहते है वो संभव नहीं है और ये के मुसलमानों को भारत में दोयम दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा है.
भारत के संविधान ने यहाँ रहने वाले हर नागरिक को बराबरी का अधिकार दिया. संविधान ने सभी को अपने धर्म और मज़हब को मानने और उस पर चलने की आज़ादी दी. पाकिस्तान में ये सब नहीं है. आधिकारिक तौर पर इस्लाम सरकारी धर्म है और राजनीती और सेना में उसका घालमेल इतना है के आज वो मुल्क तबाही के कगार पर है और वहा तालिबान और अनेको अन्य इस्लामिक उग्रपंथी कश्मीर नाम की दूकान चलाके बैठे है ताकि खूब चंदा इकठ्ठा हो और सत्ता के पकड़ बनी रहे और जनता के सवालों को दरकिनार किया जा सके. ऐसा लगता है मज़हब के अलावा और कोई सवाल जनता के नहीं है. पाकिस्तान के ऐसे मजहबी हुक्मुरानो के रिश्ते उनकी फौज से जग जाहिर है इसलिए फौज का बजट भी बहुत ज्यादा है.
भारत में हिंदुत्व के तथाकथित रक्षक वोही काम कर रहे है जो इस्लाम के परोकार पाकिस्तान में कर रहे है. वो नहीं चाहते के यहाँ कौमी याग्जहती बनी रहे और लोग अपने सवालों पे सरकार को कटघरे में खड़ा करे. पिछले पांच सालो में हिंदुत्व के अजेंडा को लाने वालो ने सिवाए आग उगलने के किया क्या ? दलित आदिवासी पिछड़ी जातियों के लोग सभी तो अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे लेकिन इनके लिए ये सवाल तो सवाल ही नहीं है. सवाल तो केवल धर्म का है ताकि उसके नाम पर मनुवादी शासन चल सके.
१९८४ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद देश में जो नफ़रत का तांडव चला वो हमें आज ही याद है. कांग्रेस ने तब इंदिरागांधी की शहादत को दूरदर्शन पर इतने चला कर हमारे सिख भाइयो और बहिनों के खिलाफ नफ़रत के बीज बोये. लोग सडको पे आये. वे सभी वही थे जो मजहब की पट्टी अपनी आंख पर बांध कर दो अपराधियों की सजा बाकी कौम को देना चाहते थे. ठीक वैसा ही हुआ गोधरा की बाद जब गुजरात में २००२ में तांडव हुआ.
आज दुनिया बहुत छोटी है. सभी लोग एक जगह बहुसंख्यक हो सकते है उर बहुत से स्थानों में अल्प संख्यक. दुनिया के बहुत हिस्सों में मुसलमान बहुसंख्यक है और बहुत जगह पे अल्प संख्यक बिलकुल वैसे ही जैसे कही हिन्दू, कही इसाई, कही बौध. हर समाज का व्यक्ति रोजगार, बेहतरी और काम की तलाश में बाहर जाता है और इतिहास गवाह है के सभ्यता के निर्माण में बाहर से आने वाले लोगो की बहुत बड़ी भूमिका रहती है. अगर हम बदला लेने वाली भावनाओं से काम करेंगे तो उसी प्रकार की ताकतों को बल मिलता है जो अपने अपने देशो में अल्पसंख्यको के देश प्रेम पर सवाल खड़े करते है और याद रखिये के आपके भाई बहिन भी कही पर अल्प संख्यक हो सकते है और ऐसे हे वर्ताब उनके साथ भी हो सकते है क्योकी नफ़रत के बीज बोने वाले और उसकी राजनैतिक फसल काटने वाले केवल एक ही देश या एक ही समुदाय में नहीं होते, वे तो हर जगह है और उन्हें केवल मानववादी संवैधानिक मूल्यों से ही निपटा जा सकता है.
इसलिए किसी भी किस्म का अपराध कानून से निपटा जाना चाहिए और उसके लिए संवैधानिक संस्थाए बनी हुई है और उन्हें अपने काम को करने की छूट होनी चाहिए. अगर सभी लोग सड़क पर खड़े होकर पुलिस और न्यायलय का कार्य स्वयं ही करने लगे तो देश का तंत्र ख़त्म हो जाएगा और उनलोगों के मंसूबे ही पूर्ण होंगे जो भारत को एक मजबूत राष्ट्र नहीं देखना चाहते है.
याद रखिये के एक राष्ट्र बन्दूक और मिसाइलो से बड़ा नहीं होता. वो आज की हालत में सबके पास हैं. राष्ट्र उसके नागरिको से बनते है और उनमे कितनी एकता है. एकता तभी संभव होगी जब सब संतुष्ट होंगे और उसके लिए हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकताओ की पूर्ति होनी चाहिए. संवैधानिक लोकतंत्र में राजनैतिक दलो का कार्य लोगो के इन प्रश्नों को सरकार तक उठाने का कार्य होता है ताकि उनका समाधान किया जा सके और संविधान ने हमें ताकत दी है के हम हर पांच साल में सरकार से उसके कामो हिसाब किताब मांगे और उसके आधार पर नयी सरकार चुने. यदि कोई आप से इस हिस्साब किताब को ना मांगने को कहता तो वह लोकतंत्र विरोधी और जनता का दुश्मन है. भारत में भी आगामी चुनाव ऐसा ही अवसर है जब जनता को ये हिसाब किताब लेना है. ये भी जरुरी है के देश सैन्य और सुरक्षा बलो के साथ खड़े रहना भी जरुरी होता है और उन्हें राजनीती से दूर रखा जाना चाहिए. देश के सैन्य बल किसी राजनैतिक दल के ही अपितु देश की जनता के है उर देश की सुरक्षा के लिए है.
कल सी आर पी ऍफ़ ने मददगार से देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले कश्मीरी छात्रो और व्यवसाइयो की मदद के लिए हेल्पलाइन जारी करी. ये बेहद महत्वपूर्ण था के एक बल के इतने जवानों की नृशंश हत्या के बाद भी वो कश्मीरी लोगो की सुरक्षा के प्रति अपनी चिंता जाहिर कर रहे थी, एक बहुत बड़ी बात है और दिल को शुकून देने वाली भी. कल रात भर से ही ट्विटर और फेसबुक पर पुलिस अधिकारियों और अन्य साथियो द्वारा कश्मीरी छात्रो और अन्य लोगो की मद्दद के लिए अपने घर और संगठनो के दरवाजे खोलना ये दर्शाता है इस देश में इंसानियत और जम्हूरियत में लोगो का अभी भी भरोषा है. भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी कौमी एकता है और उसको किसी भी कीमत पर कायम रखना है.
जहा लोगो, प्रसासनिकअधिकारियों, सैन्य बलो और पुलिस अधिकारियों के ऐसी बाते हमें मजबूत करती है और विपक्षी दलों का रवैय्या सराहनीय है वही सत्ताधारी दल के लोगो की चुप्पी और उनके भक्तो की आग उगलने वाली भाषा और नफरत के अजेंडे ने बहुत नुक्सान किया है.
हमारा सभी से अनुरोध है के प्रशासन और सैन्य बलो को उनका काम करने दीजिये. आपके सड़क पर उतर कर दंगा फसाद करने और निर्दोष लोगो को मारने पीटने से कोई पाकिस्तान में बसे नफरती ताकतों का कुछ नहीं बिगड़ने वाल्ला. ये जरुर होगा के देश के सुरक्षा बल और तनाव में होंगे और उनका काम और मुश्किल होगा. अपने सुरक्षा बालो के लिए समर्थन कोई बुरी बात नहीं. जो सैनिक मारे गए है उनके परिवार वालो के साथ खड़े होना बहुत जरुरी है लेकिन सैनिको की शहादत के नाम पर राजनीती करने वालो से सावधान रहने की जरुरत है. सेना पूरे देश की है एक पार्टी या समुदाय की नहीं. उम्मीद है देश के लोग इस बात को समझेंगे के नफ़रत फैलाने वाले देशभक्ति नहीं कर रहे अपितु देश का सबसे बड़ा नुक्सान कर रहे है और इनसे सावधान रहने की जरुरत है.
एक और बात. टी वी पर आग उगलने वालो की तन्खाये और वेतन देश पर शहीद होने वालो से बहुत ज्यादा है. ये धन्धेबाज़ है . इन्हें धंधे के पैसे मिलते इनकी आग में खुद न झुल्सिये और इनकी चालबाजी में अपने पुराने रिश्तो को ख़राब न कीजिये , ये तो पाकिस्तानी फौजियो को अपने चैनल पर बुलाने के लिए अमेरिकी डॉलर में पेमेंट करते है. हमें लगता है ये देश का भला कर रहे है लेकिन ये ओ अपनी दूकान चला रहे है. इनमे से कोई ही एंकर अपने बच्चो को फौज में भेजना नहीं चाहेगा. भारत के इस मध्य वर्ग का पाखंड देखिये के अधिकांश के बच्चो का सपना बॉलीवुड, क्रिकेट या बड़ी पेमेंट वाली कॉर्पोरेट नौकरी है न की फौज में जाना. इसलिए साथियो अपनी दोस्ती बनाये रखिये और अमन चैन से रहिये. हमारे दोस्ती और अमनचैन ही देश के दुश्मनों को परास्त कर देगी. देश की एकता को बनाये रखे, सौहार्द से रहे ताकि उसके तोड़ने वालो के मनसूबे नाकामयाब हो.
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