“पप्पू कौन है?”

अमन जाँखलां

(समाज वीकली)- ‘पप्पू’ शब्द का इस्तेमाल अक्सर उन लोगों के लिए किया जाता है, जिन्हें बेवकूफ माना जाता है। यह शब्द संज्ञा और सर्वनाम से अधिक विशेषण की भूमिका निभाता रहा है। ‘पप्पू’ शब्द का संघर्ष बहुत लंबा है। ‘पप्पू’ शब्द अपने परिश्रम से देश की तंग गलियों से गुजरता रहा और ‘शबद-इतिहस’ की अद्भुत घटना तब हुई जब यह शब्द देश की संसद में सत्ता पक्ष के होठों तक पहुँच गया और विपक्ष के मुख्य नेता के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा।

आग में घी डालने का काम देश के चौथे स्तंभ द्वारा किया गया, जिसने लोगों के मन में इन शब्दों को घोलने के लिए दिन-रात संघर्ष किया। सोशल मीडिया के विद्वानों ने भी इस शब्द का खूब समर्थन किया। शबद पप्पू फर्श से अर्श तक के महान जीवन के लिए बधाई का पात्र है। हमें इस शब्द का उपयोग सभी के लिए नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से इस शब्द की महानता पर बहुत फर्क पड़ता है।

अगर हम उन लोगों के बारे में जानना चाहते हैं जो इस शब्द के लिए पूरी तरह से योग्य हैं, तो सबसे पहले हमें यह तय करना होगा कि हमें घर-घर नौकरी चाहिए या खातों में 15-15 लाख। देश का शिक्षित युवा नौकरी चाहता है, लेकिन अचानक 15 लाख रुपये प्राप्त करना भी कोई छोटी बात नहीं है।

देश के अधिकारी और व्यापारी जिन खोखली रूढ़िवादी विचारधाराओं की रखवाली कर रहे हैं उन विचारधाराओं पर भी एक नज़र डालनी होगी जिससे अरुंधति राय, जावेद अख्तर और रवीश कुमार की आवाज भी हमारे कानों तक पहुँच सके ।

धोनी के सन्यास से लेकर किम जोंग के जीवन की घटनाओं का सही विश्लेषण बिलकुल फ्रायड की तरह करना होगा और दिल्ली से होकर,गांधीनगर से गुजरते हुए, थोड़ी देर के लिए नागपुर में रुक कर, कुछ समय के लिए केरल का रुख करना होगा जिससे पढ़े लिखे लोगों के साथ समय बिताया जा सके ।

देश की जीडीपी, विमुद्रीकरण, मेक इन इंडिया, स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत के आंकड़ों को जानने के लिए, 2 रुपये प्रति किलो के हिसाब से गेहूं लाने गई, हाथों के निशान ना आने की वजह से खाली वापिस लौटी बुजुर्ग औरत की आँखों में देखने के लिए किसी आई-स्कैनर का उपयोग करना होगा। इसके अलावा एक बेरोजगार नौजवान द्वारा टीवी पर बैठकर आईपीएल देखते हुए मुंबई इंडियंस की जीत के लिए की जा रही प्रार्थना में शामिल होना होगा।

जब हम अंत में लाखों बलात्कार पीड़ितों के असहाय माता-पिता की आंखों में कभी न खत्म होने वाली न्याय की झलक मलाला यूसुफ़ज़ई या सुरेखा भोतमांगे की नजर से देखेंगे, तो हमें अपने चारों ओर केवल पप्पू ही पप्पू नजर आएंगे, पप्पूओं की भीड़ से केवल एक ही शोर सुनाई देगा – “पप्पू कौन है?-पप्पू कौन है?”

– अमन जाँखलां
9478226980

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