(समाज वीकली)
पथिक
जीवन की राहों में प्रति पल बढ़ते रहना है
बाधाओं को तोड़ हर क्षण आगे चलते रहना है
आ जाएगी निर्बाघ ओ राही तेरी सोची मंजिल
नदिया की भांति हरदम निश्चल बहते रहना है
डगर कठिन है मंजिल दूर इस से मत घबराना
रुक जाने थक जाने से पड़ जाएगा पछताना
कर्म किए जा अडिग अविचलित भर के जोश
तेरी हिम्मत के आगे झुक जाएगा यह जमाना
जीवन के पथरीले पथ पे तुमको चलना होगा
मन चाहे सुख की खातिर आगे ही बढ़ना होगा
पीछे मुड़कर नहीं देखना कितनी यात्रा तय की
कर्म क्षेत्र में रोज नए नए संकल्प करना होगा
साहस शौर्य पराक्रम से महका दो जीवनअपना
पूर्ण करना जो सोचा है मनचाहा जीवन सपना
तेरी हिम्मत के आगे तो झुक जाएगा यह पर्वत
जीवन सफर में थककर कभी नहीं तुम रुकना
कमल
जालंधर
+91 94632 52911
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मेहंदी
हाथ रचे हो जब मेहंदी से,
और किए हो सोलह शृंगार,
मन उपवन की हर कली खिले,
महक उठे जीवन संसार।
भीनी भीनी खुशबू से इसकी,
पर्यावरण सुगंधित हो जाता है,
न जाने मन कल्पनाओं की,
किस दुनिया में खो जाता है।
रची हुई मेहंदी सिखलाती,
जीवन भर तुम खिलते रहना,
मेरा जीवन चार दिनों का,
तुम सब के दिल में रहना।
बड़ी सुहानी रंगत इसकी,
मन पुलकित हो मुसकाता है,
नई दिशा दे मन भावों को,
जीवन मधुरम हो जाता है।
मेहंदी जैसा रंग चढ़ा दो,
जो भी जीवन में अब आए,
प्रेम तुम्हारा कभी न भूले,
जब याद करे तब मुस्काए।
कमल
जालंधर
+91 94632 52911
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जुदाई
नगमे जुदाई वाले कब से सुना रहा हूँ,
ओ भूल जाने वाले, तुझको बुला रहा हूँ।
तेरा रोशनी से सारा घर चमक जाए,
सूरज को कहके तेरे घर पर सुला रहा हूँ।
यादों से मेरी तू कभी निकलता ही नहीं है,
न जाने कब से खुद को लोरी सुना रहा हूँ।
लग जाए न तुम्हें कोई चोट कभी इनसे,
मैं रास्ते के सारे पत्थर उठा रहा हूँ।
चाहत को कभी मेरी मत आज़माएगा,
खून-ए-ज़िगर से तेरी तस्वीर बना रहा हूँ।
लग जाए न नजर कहीं तुम को खुद ही की
मैं अपने घर के सारे दर्पण हटा रहा हूँ।
आऊंगा तेरे दर पर कुछ मांगने की खातिर,
साधु का भेष धरकर तेरे कूचे आ रहा हूँ।