तमिलनाडु की सांसद कनिमोझी जी ने कहा कि मेरे पूर्वज ‘शूद्र’ है…..

तमिलनाडु की सांसद कनिमोझी

डीएमके सांसद कनिमोझी जी ने देश की सन्सद में जिस हिम्मत के साथ यह कहा है कि हमारे पूर्वज कोई देवता नही बल्कि शूद्र हैं, काबिलेतारीफ है।

महिला होकर तमिलनाडु की यह बेटी जितनी दृढ़ता से सन्सद में बोलते हुए कही है कि हमारे पूर्वज होमोसेपियंस थे जैसा विज्ञान कहता है। हमारे पूर्वज किसी ऋषि से नही जन्मे हैं। हमारे पूर्वज भगवान के शरीर से नही जन्मे हैं।हम यहां हैं यह सामाजिक न्याय आंदोलन की देन है। देशवासियों के वैज्ञानिक मिजाज को बनाये रखना जरूरी है।
कनिमोझी जी का संसद में तेवर व विचार बरबस पेरियार रामास्वामी नायकर जी की याद दिला देता है। तमिलनाडु में सांस्कृतिक गुलामी पर चोट करने वाले पिछड़े वर्ग के गड़ेरिया के बेटा इव्ही पेरियार रामास्वामी नायकर जी ने जिस दृढ़ता के साथ मनुवाद को झिंझोड़ा था वह अपने आप मे बेमिसाल है।पेरियार साहब के सांस्कृतिक आंदोलन की कोख से जन्मे करुणानिधि जी ने पत्नी व विचारधारा में जब चुनने की बारी आयी तो विचारधारा के आड़े आने पर मुहब्बत को कुर्बान कर विचारधारा को चुना।

करुणानिधि जी जवानी में एक लड़की से मुहब्बत करते थे।बात जब शादी की आयी तो लड़की के घर वाले करुणानिधि जी से इस शर्त पर शादी को तैयार हुए कि शादी सनातन/ब्राह्मण पद्धति से होगी।करुणानिधि जी ने लड़की पक्ष से कहा कि वे ब्राह्मण पद्धति से शादी नही करेंगे क्योकि वे पेरियार के विचारों के पोषक हैं।करुणानिधि जी अपनी बात पर तो लड़की पक्ष अपनी बात पर अड़े रहे और अंततः शादी टूट गयी क्योकि करुणानिधि जी ने यह कह दिया कि शादी भले न हो पर विचारधारा नही छोड़ सकता।सांसद कनिमोझी इसी विचार के महाबली करुणानिधि जी की बेटी हैं।

करुणानिधि जी पेरियार साहब के सही मायने में वास्तविक वारिस थे जिन्होंने तमिलनाडु में ब्राह्मणवाद की चूलें हिला कर रख दीं थीं।करुणानिधि जी के न रहने पर उनकी लायक पुत्री कनिमोझी जी उनकी वैचारिक लड़ाई की धार दे रही हैं यह सकून की बात है।ईवीएम की बदौलत प्रचंड बहुमत वाली हिंदुत्व वादी सरकार के समक्ष कनिमोझी जी द्वारा बहुजन कांसेप्ट पर विचार व्यक्त करना न केवल एक साहसिक घटना है बल्कि देश के तमाम वंचित समाज के बुद्धिजीवियों, राजनीतिज्ञों के लिए एक आईना भी है। शाबाश कनिमोझी जी! शाबाश!!

-चंद्रभूषण सिंह यादव
प्रधान संपादक -“यादव शक्ति”
कंट्रीब्यूटिंग एडिटर-“सोशलिस्ट फ़ैक्टर”

Previous articleIndia at 72
Next articleCommon Struggles: The Benefits for African-Americans and Dalits from Comparing Their Struggles