ज्ञान व विज्ञान पर अज्ञानता व अंधविश्वास का बढ़ता पहरा…

 

– प्रेमाराम सियाग

आपने कभी गौर किया है कि बड़े-बड़े उद्योगपत्ति, राजनेता, पत्रकार, कलाकार, तथाकथित लोग बार-बार मंदिरों में क्यों जाते है!जब मोदीजी दावोस गए थे उस समय एक रिपोर्ट ऑफसेम ने जारी की थी।आर्थिक असमानता की सूची में 180 देशों के बीच भारत 137वें स्थान पर था और भारत की कुल सम्पदा में से 73%सम्पदा 1%लोगों के पास केंद्रित हो गई है।ये चंद लोग कॉलेजों, विश्वविद्यालयों से हमारा ध्यान भटकाकर अज्ञानता के आनंदलोक में ले जाकर छोड़ना चाहते है।ये ही लोग कॉलेजों में सेमिनार करने,चंदा देने के बजाय मंदिरों में दान करते है,मंदिर निर्माण के लिए चंदा देते है ताकि गांव-गांव में बनते ज्ञान के गुम्बदों को ध्वस्त करके अज्ञानता के गुम्बद खड़े हो जाएं।

हर क्षेत्र में अनपढ़ों की पलटन हमारा नेतृत्व करती है।राजनैतिक नेतृत्व बाहुबलियों,धनबलियों के हवाले है।धार्मिक नेतृत्व कर्महीन बेरोजगारों के हाथों में है इसलिए पाखंड व अंधविश्वास देश मे इस कदर फैला हुआ है जैसे कुएं में ही भांग मिलाई हुई हो और पूरा देश भंगेड़ी बनकर अंधेरी गुफाओं में मदमस्त होकर झूम रहा है।

मैँ कल एक मीडिया रिपोर्ट देख रहा था जिसमे कहा जा रहा था कि इस बार भक्तों की आस्था का सैलाब इस कदर उमड़ा कि एक ही दिन में शिरडी साईं पर 6करोड़ रुपये चढ़ावा कर दिया!अजीब रिपोर्टिंग है भाई!आस्था भी रुपये की खनक के हिसाब से तय होने लग गई!

बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि अगर देश की आजादी के बाद पंडित नेहरू समान शिक्षा व समान चिकित्सा के दो फैसले लागू कर देते तो आज हमें पुराण,महाभारत,मनुस्मृति लिखने वाले लोग मीडिया पर कब्जा करके रोज हमारे घरों में घुसकर पाखंड की पाठशाला नहीं सजाते!

मनमोहन सिंह जी की सरकार में किसानों का 72हजार करोड़ का कर्ज माफ किया गया तो तमाम बुद्धिजीवी, मीडिया,स्तंभकार,आर्थिक सलाहकार बता रहे थे इससे अर्थव्यवस्था डगमगा जाएगी लेकिन 8.5लाख करोड़ रुपये 24उद्योगपत्ति डकारकर बैठ गए और मीडिया व तथाकथित अर्थशास्त्री इन उद्योगपतियों के खिलाफ मोर्चा खोलना तो दूर की बात है उल्टा कह रहे है कि राष्ट्रीयकृत बैंकों को निजी हाथों में सौंप दों!

2013में आरएसएस के मुखपत्र पांतजन्य व आर्गेनाइजर में एक लेख छपा था जिसमे यह कहा गया था कि जेएनयू में नक्सली-देशद्रोही पैदा होते है! यह देशविरोधी गतिविधियों का अड्डा बन चुका है! यह वो तैयारी थी जिसका परिणाम 2015-16में कन्हैयाकुमार के रूप में सामने आया था। ये लोग शिक्षा व खुले विचारों को कभी स्वीकार नहीं करते। जेएनयू के पढ़े लिखे लोग आज इनकी सरकार में कैबिनेट मंत्री है, कैबिनेट सचिव है,विदेश सचिव है लेकिन जेएनयू को बर्बाद तो करना है!

उसका कारण यह है कि जेएनयू में कंधमाल के किसान का बेटा,जैसलमेर के मजदूर का बेटा,दीमापुर के दलित का बेटा भी आकर ज्ञान अर्जित करने लग गया था। मनुस्मृति वालों को दलितों, पिछड़ों, मजदूरों का शिक्षित होना नागवार गुजरता है। इसलिए देश के ज्ञान के इस प्रीमियर गुम्बद को ध्वस्त करने के लिए पूरा षड्यंत रचा गया था।

आज सारे कॉलेजों व विश्वविद्यालयों के प्रमुख पदों पर मनुवादियों को बैठा दिया गया व बचे-खुचे में बैठाया जा रहा है। जहाँ बहुजन समाज का कोई आदमी प्रतिरोध करने की हालत में है वहां 1-1पद की भर्ती निकालकर आरक्षणमुक्त नियुक्तियां की जा रही है।विश्वविद्यालय सिर्फ परीक्षा के केंद्र नहीं होते! विश्वविद्यालय सिर्फ फैल पास के प्रमाणपत्र बांटने के केंद्र नहीं होते!विश्वविद्यालय सामाजिक मूल्यों के निर्माण के केंद्र होते है।विश्वविद्यालय विचारों व नवाचारों के उदगम स्थल होते है!विश्विद्यालय पूरे समाज को अज्ञानता से ज्ञानता की तरफ ले जाने के रास्ते होते है। विश्विद्यालय समानता,स्वतंत्रता व बंधुता की भावना के साथ सभ्यतागत मानवता को चरम की और ले जाने के नेतृत्वकर्ता होते है।

पंडित नेहरू ने जो सिला दिया उसकी सजा आज 70साल बाद हम इस रूप में भुगत रहे है कि गरीब इस डर से अस्पताल नहीं जाता कि कहीं बड़ी बीमारीं निकल गई तो इलाज का पैसा कहां से लाऊंगा!बिहार के सरकारी स्कूल में एक सत्ताधारी पार्टी के मालिक के ड्राइवर ने ट्रक बच्चों पर चढ़ा दिया जिसमें 9बच्चे मर गए और 16बच्चे अपाहिज हो गए लेकिन उस दिन राष्ट्रीय मीडिया श्रीदेवी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के इंतजार में गोते मार रहा था!

दोष सिर्फ राजनेताओं में ही नहीं बल्कि हमारी सामाजिक सरंचना में है।धर्म के नाम पर एक इंसान को श्रेष्ठ व दूसरे को नीच बताने वाले अत्याचारी ताने-बाने को हम आज भी कंधों पर उठाए घूम रहे है!यह उसी की परिणीति है कि अलग-अलग टुकड़ों में हमने जो भी हासिल किया था वो आज हमारी आंखों के सामने लुट रहा है।चिकित्सा पर उद्योगपत्ति कब्जा कर रहे है,शिक्षा निजी हाथों में लगभग जा चुकी है!पूँजी पर पूर्णकालिक कब्जा इनका ही है!सत्ता-मीडिया-कॉरपोरेट सब इनके हाथों में है यही कारण है कि मनुस्मृति लिखने वाले लोग ही आज हमें मीडिया के माध्यम से समझा रहे है कांवड़ लाने से तुम्हारा भाग्य बदल जायेगा!सरस्वती माता को धोक देने से ज्ञान का बीज प्रस्फुटित हो जाएगा।यह ज्ञान के दुश्मनों की भजन मंडली हमे मृदंग बजाते हुए अज्ञानता के आनंदलोक में धकेल रही है और खुद बुद्धिजीवी का स्वघोषित प्रमाण लेकर श्रमजीवियों के खून-पसीने पर मौज उड़ा रही है।

देश बदल रहा है लेकिन इस अंदाज में बदल रहा है कि आजादी के 70 सालों में हमने जो कुछ हासिल किया था वो वापिस लुट रहा है।

लुटेरों की सत्ता है, लुटेरे ही मस्त है!
इन्हीं की जनवरी, इन्ही का अगस्त है!!

 

 

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