कुशीनगर में बनारसी मुशहर के हत्यारे कौन ?

(समाज वीकली)

प्रिय मित्रो,
बनारसी मुशहर ५५ वर्ष की उम्र के थे और मई २४ को उनका शव उनके गाँव कोइलसवा में स्कूल के पास सड़क पर पाया गया जब लोग सुबह शौच के लिए जाते है. उनके मित्र राम प्रीत सड़क के पार अचेतन अवस्था में गंभीर रूप से घायल मिले. गाँव प्रधान ने पुलिस बुलाकर शव का पंचनामा करवा दिया और बाद में पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुँची के दोनों मित्रो ने ताड़ी पी थी और किसी बात पर उनकी कहा सूनी हुई और उन्होंने एक दुसरे से झगडा किया जिसमे बनारसी की मौत हो गयी और राम प्रीत घायल हो गए. 
बनारसी की पत्नी और परिवार को इस बात पर तनिक भी विश्वास नहीं है. वह कहती है के उनके पति को गाँव की सामंती जातियों ने रंजिश के तहत मारा है क्योंकि इन्ही लोगो ने उनका कोटा करीब ७ वर्ष पहले छुड्वाया था.
बनारसी की मौत के ऊपर मेरा ये लेख भेज रहा हूँ. नीचे उनकी पत्नी का साक्षात्कार भी है और कुछ फोटोग्राफ भी 
Interview with Rajmati Devi, Wife of Banarasi Mushahar

 

करीब २० वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले का कोइलासवा गाँव मष्तिष्क ज्वर और भूख से होने वाली मौतों के सिलसिले में खबर में आया था और उसके बाद से ही पूर्वांचल खासकर देवरिया और कुशीनगर जिलो में मैंने मुशाहार समुदाय के बीच जाने की शुरुआत की और उनकी समस्याओ को ईमानदारी से समझने के प्रयास किये.

अबकी बार भी कोइलासवा गाँव के मुशाहार न्याय मांग रहे है लेकिन वे कहते है के उनकी बात सूनी नहीं जा रही और और मीडिया के पास समय नहीं है. गाँव के बनारसी मुशाहार जिनकी उम्र ५५ वर्ष की रही होगी की  २३ मई २०२० की रात्रि में  ह्त्या कर दी गयी. उनकी ह्त्या बेहद बेरहमी से की गयी और उनके पुत्र सुनील के अनुसार उनका सर कलम कर दिया गया था. सुनील बताते है के रात में उनके पिता और उनके मित्र रामप्रीत नट  दोनो राज कुमार जास्य्वाल के उस खेत पर गए जहा बनारसी मुशाहार उनके १० बीघा खेत की रखवाली करते थे और बदले में एक बीघा खेत में उन्हें अनाज बोने और खाने कमाने की छूट थी स्थानीय भाषा में इस व्यवस्था को सीरवाई कहते है. यह काम के बदले में अनाज योजना का सामंती संस्करण है .

रात के ९ बजे सुनील अपने पिटा और रामप्रीत को खेत तक छोड़ कर आया और साथ में उनका खाना भी था. दोनों बहुत गहन मित्र थे. अगले दिन सुबह करीब ८ बजे जब लोग जब शौच के लिए गाँव के बाहर की त्गरफ आते है तो उन्होंने बनारसी  का शव देखा और सड़क के दूसरी और रामप्रीत मूर्छित अवस्था में गिरा पडा था. गाँव में हडकंप मच गया . काम प्रधान केशव यादव ने तुरंत पुलिस को फोन  किया और शव का पंचनामा करवा दिया . रामप्रीत को जिला अस्पताल में भरती करवा दिया गया. उसकी हालत भी खराब थी लेकिन कुछ ठीकदिनों बाद जब वह  बाद में पुलिस ने रामप्रीत को आरोपी बना कर जेल भेज दिया. बनारसी मुशाहार की पत्नी राजमती और  बेटा सुनील आरोप लगा रहे है के पुलिश ने बिना कोई जांच किये असली हत्यारों को बचाने की कोशिश की है. रामप्रीत नत जेल में है और उसके छोटे बच्चे घर में परेशान है. दूसरे, बनारसी मुशाहार के परिवार का जीवन अब दूभर हो गया है क्योंकि उन्हें न तो कोई सहायता मिली और ना ही राजकुमार जायसवाल, जिनके खेत में वह कम करते थे ने किसी भी प्रकार की कोई सहायता दी है.

क्या घटना है और परिवार क्या कहता है

बनारसी मुशाहार और उनका परिवार बहुत मेहनती था. बनारसी मुशाहार पहले सरकारी कोटा की दूकान चलते थे  और यह बात वहा की सामंती जातियों को मंज़ूर नहीं थी. तत्कालीन वार्ड मेम्बर केशव यादव ने बनारसी मुशाहार के खिलाफ में भ्रस्टाचार के आरोप लगाकर उनका कोटा छिनवा लिया था.  बनारसी इस बात से बहुत परेशान थे और लेकिन उनके आत्म सम्मान ने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और उन्होंने राज कुमार जायसवाल के १० बीघा खेत को सीरवाई पर ले लिया. उस समय जायसवाल के खेत की स्थिति बहुत ख़राब थी. बनारसी ने मेहनत कर खेत पर कई पेड़ लगाए और वहा की रखवाली करता था. परिवार के लोगो का कहना था के जायसवाल के खेत से जुदा १० बीघा का एक और खेत किसी यादव जी का है जिसके कारण दोनों में तनाव था. कई बार यादव समाज के गाय भैंस अगर जायसवाल के खेत में आते तो बनारसी उन्हें खदेड़ देता और शायद ऐसे ही कई और कारण रहे होंगे जिसके कारण वे लोग नाराज रहे हो.

बनारसी की पत्नी कहती ही के रामप्रीत नट के साथ उनके पारिवारिक रिश्ते है और वो ऐसा नहीं कर सकता. आखिर वो ऐसा करेगा क्यों ? उनका कहना है रामप्रीत कोर्ट में गवाही देने को तैयार है लेकिन अभी तक उससे किसी ने कोई बात नहीं कही है.

राजमती का कहना है के प्रधान केशव यादव ने अपने आप ही शव का पंचनामा करवाया जिसमे उनके परिवार के सदस्य नहीं थे और खुद ही पुलिस से सब कुछ करवा कर मामले को रफा दफा करवाने की कोशिश की है. आज तक प्रधान और अन्य कोई लोग चाहे यादव हो या जायसवाल, उनके घर पर नहीं आये और ना ही किसी पुलिस कर्मी ने उन तक पहुचने की कोशिश की. राजमती स्थानीय चौकी पर कई बार जा चुकी है जो उन्हें थाने में भेज देते है और जब वह थाना जाती है तो वो उन्हें पुलिस चौकी में जाकर पता करने के लिए कहते है. जिला मुख्यालय पडरौना में है जो उनके यहाँ से बहुत दूर है. ऐसे समय में जब परिवार के खुद के खाने के लाले पड़े हो वो सीनियर पुलिस अधिकारियों तक भी नहीं पहुँच सकते. एक बार मुशाहार लोग कोशिश भी किये लेकिन लॉक डाउन के चलते उन्हें बताया गया के अभी अधिकारी किसी से नहीं मिल रहे हैं.

बनारसी के बेटे सुनील का कहना है के उनके पिता शरीर से काफी तंदुरस्त थे और राम प्रीत नट अगर कोशिश भी करते संभव नहीं था. वह ये भी कह रहे थे के घटनास्थल से हॉकी स्टिक भी मिली लेकिन जब दोनों लोग घर से निकले थे तब उनके पास कुछ भी नहीं था. सुनील कहते है के यदि रामप्रीत को उनके पापा का मर्डर करना होता तो वो उनके खेत में ही करता क्योंकि वो तो सुनसान जगह थी. आखिर जायसवाल और यादवो के खेतो से दूर गाँव के अंतिम छोर में सड़क पर तो ह्त्या करने का कोई मतलब नहीं था और फिर वह स्वयम भी इतनी बुरी तरह से घायल थे के बेहोशी की अवस्था में ही उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया था.

क्या हुआ होगा

राजमति और सुनील कहते है के २३ मई की रात को ११ बजे तक यादव लोगो ने खेतो में ट्रेक्टर चलाया और अपने अलावा और लोगो के खेतो को भी जोत दिया. रात भर डी जे चल रहा था और भयंकर शोर था. उन्हें लगता है के जब बनारसी और राम प्रीत अपने खेत की और जा रहे होंगे तभी उन्हें एक योजना के तहत मारा गया. बनारसी अपने कोटे की लड़ाई लड़ रहे थे और उनका काफी पैसा खर्च हो चुका था. उनके पास जो थोड़ा बहुत जमीन थी वो ‘रेहन’ पर दे कर उन्होंने पैसे इकठ्ठा किये. बनारसी का ईमानदारी से अपने ‘मालिक’ राज कुमार  जायसवाल की सेवा करना शायद और उनका स्वाभिमान शायद उनके विरोधियो को नहीं भाया और इसी लिए उनकी ह्त्या की गयी.

इस पूरे प्रकरण में राज कुमार जायसवाल की चुप्पी पर भी सवाल खड़े हो रहे है. राजमति कहती है के बनारसी की ह्त्या के बाद से ही जायसवाल ने उन्हें किसी भी प्रकार की मदद करने से इंकार कर दिया उनसे सीरवाई भी छीन ली. एक दिन उनकी पत्नी अपने जानवरो के लिए कुछ घास लेने जा रही थी तो उन्हें वहा आने से मना कर दिया गया. सबसे बड़ी बात है के राज कुमार जायसवाल ने परिवार को किसी भी प्रकार की आर्थिक और नैतिक सहयोग से इनकार कर दिया. अब राज कुमार जायसवाल ने वो खेत किसी यादव बिरादरी के व्यक्ति को सीरवाई पर दिया है.

पुलिस की भूमिका

पुलिस ने इन केस को दोनों द्वारा ताड़ी पीकर एक दूसरे से झगड़ा कर मारने का दावा किया है. पुलिस का कहना है के दोनों के रात को साथ ताड़ी पी और फिर किसी बात के लिए दोनों के बीच झगड़ा हो गया और आपसी मारपीट में बनारसी की मौत हो गयी और रामप्रीत घायल हो गया. लेकिन पुलिस की ये बात पूर्वाग्रहो और स्थानीय लोगो के आधार पर बनाई गयी लगती है. पहला प्रश्न जो खुद बनारसी के परिवार वाले कह रहे है वह यह के यदि शराब पीकर दोनों को झगड़ा करना होता तो वह राज कुमार जायसवाल के १० बीघा खेत में जहा रात को रहते भी थे, वहा की जा सकती थी. वो जायसवाल और यादवो के खेत में न होकर स्कूल के पास रोड पर की गयी. परिवार वाले यह भी कहते है शारीरिक क्षमता में बनारसी रामप्रीत से बहुत अधिक बलिष्ठ था. प्रश्न ये भी  उठता है के क्या इस घटनाक्रम में पुलिस ने बनारसी और रामप्रीत के परिवार वालो और अन्य ग्रामीणों से कोई बात क्यों नहीं की.  क्या पुलिस को जायसवाल और गाँव प्रधान केशव यादव से सवाल नहीं पूछने चाहिए थे. आखिर, बनारसी मुशाहर गाँव का ७ वर्ष तक कोटेदार भी था और निश्चित तौर पर अपने समाज के हिसाब से एक सम्मानित व्यक्ति भी था. राजमति मुशहर कहती है के अब यादव और जायसवाल मिल गए है और हमें दूर कर दिया गया है. वो पूछती है क्या इसके लिए उनके पति की बलि देना जरुरी था.

 घटना की दोबारा जांच हो और एस सी एस टी एक्ट में मुकदमाँ दर्ज हो

बनारसी के परिवार के सदस्य पुलिस के रवैये से बहुत परेशान है. राजमति और सुनील कई बार चौकी और थाने के चक्कर लगा चुके है लेकिन उन्हें कुछ नहीं पता के क्या हो रहा है. प्रधान केशव यादव के ही आधार पर ऍफ़ आई आर की गयी है जबकि राजमति से एक भी बार नहीं पूछा गया के उनका शक किस पर  है. वह कहती है पुलिस रामप्रीत से गवाही क्यों नहीं दिलवा रही. पुलिस एक भी दिन उनसे बात नहीं की. पुलिस का यह रवैय्या केवल यह दिखाता है के मुश्हारो के बारे में व्याप्त पूर्वाग्रहों के आधार पर इस मामले में कोई गंभीरता नहीं दिखाईए गयी है . आज तक परिवार के लोगो को पूरे मामले में चार्ज शीट नहीं मिली है और वो नहीं जानते के क्या हो रहा है. वे रामप्रीत से भी मिलना चाहते है लेकिन उन्हें मिलने की अनुमति नहीं मिलती.

बनारसी मुशहर ने करीब ७ साल सरकारी राशन की दूकान चलाई जो गाँव की सभी दबंग जातियों को नापसंद थी और उसके खिलाफ साजिश कर उससे कोटा छिनवाया गया था. बनारसी मेहनतकश था और उसने सीरवाई करना स्वीकार किया और अपनी जिंदगी को अच्छे से चला रहा था. क्या उसका स्वाभिमान से रहना गाँव के दबंगों को नागवार लगा ? क्या ये मात्र ह्त्या थी या कोई साजिश ताकि मुशाहरो को भयभीत रख उनसे मनमर्जी का काम लिया जा सके ?

दरअसल इस मामले में ईमानदारी से जांच होनी चाहिए और मामले में एस सी एस टी एक्ट लगाया जाना चाहिए ताके न केवल असली अपराधी पकडे जाए अपितु बनारसी के परिवार को मुआवजा भी मिल सके.  बनारसी मुशहर की ह्त्या इस क्षेत्र में मुशाहरो को दबाने और उनमें स्वाभिमान को ख़त्म करने की साजिश है जो बेहद खतरनाक है. जैसे जैसे मुशहर समाज अपने अधिकारों के लिए सजग हो रहा है वैसे वैसे जातिवादी ताकते भी उनके आत्म सम्मान को जानबूझकर तोड़ने के प्रयास करती है और आवश्यक है प्रशासन और सरकार इस बात को गंभीरता से ले ताके समाज के इस सबसे दबे कुचले समुदाय को न्याय मिले और वे भी राष्ट्र की मुख्यधारा में आकर अपना योगदान कर सके.

 

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